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________________ समन्तभद्र-परिचय www.rrrrrrrrrrrrrrwmmm यह भी लिखा है कि- उन्होने सम्पूर्ण पदार्थ-तत्वोको अपना विषय करनेवाले स्थाद्वादरूपी पुण्योदधि-तीर्थको, इस कलिकालमे, भव्यजीवोके आन्तरिक मलको दूर करनेके लिये प्रभावित किया है-उसके प्रभावको सर्वत्र व्याप्त किया है, और ऐसा लिखकर उन्हे बारबार नमस्कार किया है। ___ स्वामी समन्तभद्र यद्यपि बहुतसे उत्तमोत्तम गुणोके स्वामी थे, फिर भी कवित्व, गमकत्व, वादित्व और वाग्मित्व नामके चार गुण आपमे असाधारण कोटिकी योग्यताको लिये हुए थे-ये चारो शक्तियाँ उनमे खास तौरसे विकासको प्राप्त हुई थी और इनके कारण उनका निर्मल यश दूर-दूर तक चारो ओर फैल गया था। उस समय जितने 'कवि' थे-नये नये सन्दर्भ अथवा नई नई मौलिक रचनाएँ तय्यार करनेवाले समर्थ विद्वान थे, 'गमक' थे-दूसरे विद्वानोकी कृतियोके मर्म एवं रहस्यको समझने तथा दूसरोंको समझानेमे प्रवीणबुद्धि थे, विजयकी ओर वचन-प्रवृत्ति रखनेवाले 'वादी' थे, और अपनी वाकपटुता तथा शब्दचातुरीसे दूसरोको रंजायमान करने अथवा अपना प्रेमी बना लेनेमे निपुण ऐसे 'वाग्मी' थे, उन सबपर समन्तभद्रके यशकी छाया पडी हुई थी, वह चूड़ामणिके समान सर्वोपरि था और बादको भी बडे-बड़े विद्वानो तथा महान् आचार्योके द्वारा शिरोचार्य किया गया है। जैसा कि विक्रमकी हवीं शताब्दीके विद्वान् भगवजिनसेनाचार्यके निम्न वाक्यसे प्रकट हैकवीनां गमकानां च वादीनां वाग्मिनामपि । यशः सामन्तभद्रीय मूधिनचूडामणीयते ॥ (आदिपुराण) __ स्वामी समन्तभद्रके इन चारो गुणोकी लोकमे कितनी धाक थी, विद्वानोके हृदय पर इनका कितना सिक्का जमा हुआ था
SR No.010665
Book TitleYuktyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1951
Total Pages148
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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