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युक्त्यनुशासन
अथवा प्रेक्षावान-समीक्ष्यकारी प्राचार्य महोदयके द्वारा जिसकी प्रवृत्ति हुई है और जिसने सम्पूर्ण मिथ्याप्रवादको विघटित अथवा तितर बितर कर दिया है।' और दूसरे स्थानपर यह बतलाया है कि-'जिन्होंने परीक्षावानोके लिये कुनीति और कुप्रवृत्तिरूप-नदियोको सुखा दिया है, जिनके वचन निर्दोष नीतिस्याद्वादन्यायको लिये हुए होनेके कारण मनोहर है तथा तत्त्वार्थसमूहके संद्योतक है वे योगियोके नायक, स्याद्वादमार्गके अग्रणी नेता, शक्ति-सामयंसे सम्पन्न-विभु और सूर्यके समान देदीप्यमान-तेजस्वी श्रीस्वामी समन्तभद्र कलुषित-आशय-रहित प्राणियोको-सजनो अथवा सुधीजनोको-विद्या और आनन्द-घनके प्रदान करनेवाले होवे-उनके प्रसादसे (प्रसन्नतापूर्वक उन्हें चित्तमे धारण करनेसे ) सबोके हृदयमे शुद्धज्ञान और आनन्दकी वर्षा होवे'। साथ ही एक तीसरे स्थान पर यह प्रकट किया है कि'जिनके नय-प्रमाण-मूलक अलंध्य उपदेशसे-प्रवचनको सुनकर-महा उद्धतमति वे एकान्तवादी भी प्राय शान्तताको प्राप्त हो जाते हैं जो कारणसे कार्यादिकका सर्वथा भेद ही नियत मानते है अथवा यह स्वीकार करते हैं कि कारण-कार्यादिक सर्वथा अभिन्न ही है-एक ही है-वे निर्मल तथा विशालकीर्तिसे युक्त अतिप्रसिद्ध योगिराज स्वामी समन्तभद्र सदा जयवन्त रहेअपने प्रवचनप्रभावसे बराबर लोकहृदयोको प्रभावित करते रहे।
___ इसी तरह विक्रमकी ७वी शताब्दीके सातिशय विद्वान् श्रीअकलकदेव-जैसे महर्द्धिक आचार्यने, अपनी अष्टशती मे समन्तभद्रको 'भव्यैकलोकनयन' -भव्य जीवोके हृदयान्धकारको दूर करके अन्त प्रकाश करने तथा सन्मार्ग दिखलानेवाला अद्वितीय सूर्य-और 'स्याद्वादमार्गका पालक ( संरक्षक ) बतलाते हुए