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________________ जिन-पूजाधिकार मीमांसा ८१ या छोटा है, जो बालक है या प्रतिवृद्ध है, जो पापके काम करना जानता है और जो प्रतिमानी, मायाचारी तथा लोमी है, वह भी पूजनका अधिकारी नही ठहरता। इसको साधारण चित्मपूजकका स्वरूप माननेसे पूजनका मार्ग और भी अधिक इतना तग (सकीर्ण) हो जाता है कि वर्तमान १३-१४ लाख जैनियोंमें शायद कोई बिरला ही जैनी ऐसा निकले जो इन समस्त लक्षरगोसे सुसम्पन्न हो और जो जिनदेवका पूजन करनेके योग्य समझा जावे । वास्तव में भक्तिपूर्वक जो नित्यपूजन किया जाता है उसके लिये इन बहुतसे विशेषणोकी आवश्यकता नही है, यह ऊपर कहे हुए नित्यपूजन के स्वरूपसे ही प्रगट है । अत आगमसे विरोध प्राने तथा पूजनसिद्धान्त और नित्य पूजन के स्वरूपसे विरुद्ध पडनेके कारण यह स्वरूप साधारण नित्यपूजकका भी नही हो सकता। इसी प्रकार यह स्वरूप ऊँचे दर्जे के नित्यपूजकका भी नही हो सकता । क्योकि ऊँचे दर्जे के नित्यपूजकका जो स्वरूप धर्मसप्रहश्रावकाचार और पूजासार ग्रन्थोमे वर्णन किया है और जिसका कथन ऊपर ग्रा चुका है, उससे इस स्वरूपमे बहुत कुछ विलक्षणता पाई जाती है । यहाँपर अन्य बातोके सिवा त्रैवर्णिकको ही पूजनका अधिकारी वर्णन किया है, परंतु ऊपर अनेक प्रमारगोसे यह सिद्ध किया जा चुका है कि ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र, चारो ही वर्णके मनुष्य पूजन कर सकते हैं और ऊँचे दर्जे के नित्यपूजक हो सकते हैं। इसलिये यह स्वरूप ऊँचे दर्जे के नित्यपूजक तक ही पर्याप्त नही होता, बल्कि उसकी सीमासे बहुत आगे बढ जाता है । दूसरे यह बात भी ध्यान रखने योग्य है कि ऊँचा दर्जा हमेशा नीचे दर्जे की और नीचा दर्जा ऊँचेकी अपेक्षासे ही कहा जाता है । जब एक दर्जे का मुख्यरूपसे कथन किया जाता है तब दूसरा दर्जा गौर होजाता है, परन्तु उसका सर्वथा निषेध नही किया जाता। जैसा कि सकलचारित्र ( महाव्रत) का वर्णन करते हुए देशचारित्र (प्रणु
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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