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________________ ४१८ युगवीर निबन्धावली अनुग्रह उपकारकी बात तो उसके पास कहाँ पटक सकती है ? वह तो उससे कोसो दूर है । महात्मा गान्धी-जैसे सन्तपुरुष वनस्पतिघीके विरोधमें जो कुछ कह गये हैं उसेभी उसने टुकरा दिया है और उस अधिकारीको भी ठुकरानेके लिये राजी कर लिया है जो बात-बातमें गाधीजीके अनुयायी होनेका दम भरा करता है और दूसरोको भी गाधीजीके आदेशानुसार चलनेकी प्रेरणा किया करता है। ऐसा ढोगी, दम्भी बगुला-भगत उच्चाधिकारी जो तुच्छ लोभमें पडकर अपने कर्त्तव्यसे च्युत, पथसे भ्रष्ट और अपने अधिकारका दुरुपयोग करनेके लिये उतारू हो जाता है वह दानका पात्र भी नहीं है। इस तरह पारमार्थिक दृष्टिसे सेठ रामानन्दका दान कोई दान नहीं है। और न लोकमें ही ऐसे दानको दान कहा जाता है। यदि द्रव्यको अपनेसे पृथक् करके किसीको दे देने मात्रके कारण ही उसे दान कहा जाय तो वह सबमें निकृष्ट दान है, उसका उद्देश्य बुरा एव लोकहितमें बाधक होनेसे वह भविष्यमें घोर दुखो तथा आपदामोके रूपमें फलेगा । और इसलिये पांच-पाँच लाखके उक्त चारों दानियोमें सेठ रामानन्दको सबसे अधिक निकृष्ट, नीचे दर्जेका तथा अधम दानी समझना चाहिये। अध्यापक-शाबास । मालूम होता है अब तुम बड़े और छोटेके तत्त्वको बहुत कुछ समझ गये हो । हाँ, इतना और बतलाओ कि जिन चार दानियोको तुमने पांच पाच लाखके दानियोसे बडे दानी बतलाया है वे क्या दस-दस हजारकी समान रकमके दानसे परस्परमें समान दानी हैं, समान-फलके भोका होंने और उनमे कोई परस्परमे बड़ छोटा दानी नही है। विद्यार्थी उत्तरकी खोजमें मन-ही-मन कुछ सोचने लमा, इतने में अध्यापकजी बोल उठे-'इसमें अधिक सोचनेवी बात नहीं, इतना तो स्पष्ट ही है कि जब अधिक द्रव्यके दानी भी अल्प द्रव्य. के दानीसे छोटे हो जाते हैं और दानदल्यकी संख्या पर ही दान तथा
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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