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________________ बड़ा और छोटा बानी ४१७ दस-दस हज्जारके उन चारों दानियोंके दान दानको ठीक स्पिरिट, भावना तथा स्व-परकी अनुग्रहबुद्धि प्रादिको लिये हुए हैं और इसलिये दानके ठीक फलको फलनेवाले सम्यकदान कहे जानेके योग्य हैं। इसीसे मैं उनके दानी सेठ दयाचन्द, सेठ ज्ञानानन्द, ला विवेकचन्द और बाबू सेवारामजीको पाँच पाँच लाखके दानी उन चारो सेठों डालचन्द, ताराचन्द, रामानन्द, और विनोदीरामसे बड़े दानी समझता हूँ । इनके दानका फल हर हालत मे उन तथाकथित बड़े दानियोंके दान - फलसे बड़ा है और इसलिये उन दस-दस हजार रके दानियोमेसे प्रत्येक दानी उन पाँच-पाँच लाखके दानियोसे बडा है । यह सुनकर प्रध्यापक वीरभद्रजी अपनी प्रसन्नता व्यक्त करते हुए बोले- 'परन्तु सेठ रामानन्दजीने तो दान देकर अपना नाम मी नही चाहा, उन्होने गुप्तदान दिया है और गुप्तदानका महत्व अधिक कहा जाता है, तुमने उन्हें छोटा दानी कैसे कह दिया ? जरा उनके विषयको भी कुछ स्पष्ट करके बतलानो । विद्यार्थी - सेठ रामानन्दका दान तो वास्तवमे कोई दान ही नही है -- उस पर दानका कोई लक्षरण घटित नही होता और इसलिये वह दानकी को ही नही आता - गुप्तदान कैसा ? वह तो स्पष्ट रिश्वत अथवा घूस है, जो एक उच्चाधिकारीको लोभमे डालकर उसके afterरोका दुरुपयोग कराने और अपना बहुत बडा लौकिक स्वार्थ सिद्ध करनेके लिये दी गई है और उस स्वार्थसिद्धिकी उत्कट भावनामें इस बातको बिल्कुल ही भुला दिया गया है कि वनस्पतिघीके प्रचारसे लोक में कितनी हानि हो रही है- जनताका स्वास्थ्य कितना गिर गया तथा गिरता जाता है और वह नित्य नई कितनी व कितने प्रकारकी बीमारियोकी शिकार होती जाती है, जिन सबके कारण उसका जीवन भाररूप हो रहा है । उस सेठने सबके दुख-कष्टोकी मोरसे अपनी प्राखे बन्द कर ली है— उसकी तरफसे बूढा मरो चाहे जवान उसे अपनी हत्यासे काम ! फिर दानके अगस्वरूप किसीके
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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