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________________ उपवास २३ पदको धारण करके नीची क्रिया करें अथवा ! उपवासका कुछ भी कार्य न करके अपने प्रापको उपवासी और व्रती मान बैठे ! इसमें कुछ मी सन्देह नही कि विधिपूर्वक उपवास करनेसे पाँचों इन्द्रियाँ और मन शीघ्र ही वशमें हो जाते हैं और इनके वशमें होते ही उन्मार्ग - गमन रुककर धर्म साधनका अवसर मिलता है। साथ ही उद्यम, साहस, पौरुष, धेर्य आदि सद्गुण इस मनुष्यमें जाग्रत हो उठते हैं और यह मनुष्य पापोसे बचकर सुखके मार्गमें लग जाता है। परन्तु जो लोग विधिपूर्वक उपवास नही करते उनको कदापि उपवासके फलकी यथेष्ट प्राप्ति नही हो सकती । उनका उपवास केवल एक प्रकारका कायक्लेश है, जो भावशून्य होनेसे कुछ फलदायक नही, क्योकि कोई भी क्रिया बिना भावोके फलदायक नही होती ('यस्मात् क्रिया प्रतिफलन्ति न भाव शून्या " ) । श्रतएव उपवासके इच्छुकोको चाहिए कि वे उपवासके प्राशय और महत्वको अच्छी तरहसे समझलें, वर्तमान विरुद्धाचरणोको त्याग करके श्रीश्राचार्योंकी श्राज्ञानुकूल प्रवर्ते और कमसे कम प्रत्येक अष्टमी तथा चतुर्दशीको (जो पर्वके दिन हैं) अवश्य ही विधिपूर्वक [ तथा भावसहित उपवास किया करें । साथ ही इस बातचो अपने हृदयमे जमा लेवें कि उपवासके दिन अथवा उपवासकी अवधि तक व्रतीको कोई भी गृहस्थीका धधा वा शरीरका शृगारादि नही करना चाहिए। उस दिन समस्त गृहस्थारभको त्याग करके पच पापोसे विरक्त होकर अपने शरीरादिकसे ममत्व - परिणाम तथा रागभावको घटाकर और अपने पाचो इन्द्रियोंके विषयो तथा क्रोध, मान, मायादि कषायोको वशमे करके एकान्त स्थान अथवा श्रीनिमन्दिर प्रादिमे बैठकर शास्त्रस्वाध्याय, शास्त्रश्रवरण, सामायिक, पूजन-भजन श्रादि धर्मकार्योंमे कालको व्यतीत करना चाहिए । निद्रा कम लेनी चाहिए, श्रार्त- रौद्रपरिणामोको अपने पास नही आने देना चाहिए, हर समय प्रसन्न वदन रहना चाहिए और इस बातको याद रखना चाहिए कि शास्त्र-स्वाध्यायादि जो कुछ भी धर्मके कार्य
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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