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________________ समन्तभद्र- विचार - दीपक (३) ३२ वीतराग से प्रार्थना क्यों ? जब वीतराग अर्हन्तदेव परम उदासीन एव कृतकृत्य होनेसे कुछ करते धरते नही तब पूजा-उपासनादिके अवसरोपर उनसे बहुधा प्रार्थनाएँ क्यो की जाती है और क्यों उनमें व्यर्थ ही कर्तृत्व-विषयका श्रारोप किया जाता है ? - जिसे स्वामी समन्तभद्रजैसे महान आचार्योंने भी अपनाया है । यह प्रश्न बडा ही सुन्दर है और सभी के लिये इसका उत्तर वांछनीय एव जाननेके योग्य है । अत इसीके समाधानका यहाँ प्रयत्न किया जाता है । सबसे पहली बात इस विषयमे यह जान लेनेकी है कि इच्छापूर्वक अथवा बुद्धिपूर्वक किसी कामको करनेवाला हीउसका कर्ता नही होता बल्कि अनिच्छापूर्वक अथवा प्रबुद्धिपूर्वक कार्यका करनेवाला भी कर्ता होता है । वह भी कार्यका कर्ता होता है जिसमें इच्छा - बुद्धिका प्रयोग ही नही किन्तु सद्भाव ( अस्तित्व ) भी नही अथवा किसी समय उसका सभव भी नही है। ऐसे इच्छाशून्य तथा बुद्धिहीन कर्ता कार्योंके प्राय निमित्तकारण ही होते हैं और प्रत्यक्षरूपमें तथा अप्रत्यक्षरूपमें उनके कर्ता जड और चेतन दोनो ही प्रकारके पदार्थ हुआ करते हैं । इस विषयके कुछ उदाहरण यहाँ प्रस्तुत किये जाते हैं, उन पर जरा ध्यान दीजिये - - (१) 'यह दवाई ग्रमुक रोगको हरनेवाली हैं । यहा दवाईमें कोई इच्छा नही और न बुद्धि है, फिर भी वह रोगको हरनेवाली
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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