SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 364
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समन्तभद्र-विचार-दीपक (१) स्व-पर-वैरी कौन ? स्व-पर-वैरी-अपना और दूसरोका शत्रु-कौन ? इस प्रश्न. का उत्तर ससारमें अनेक प्रकारसे दिया जाता है और दिया जा सकता है। उदाहरणके लिये १ स्वपरवैरी वह है जो अपने बालकोको शिक्षा नहीं देता, जिससे उनका जीवन खराब होता है, और उनके जीवनकी खराबीसे उसको भी दुख-कष्ट उठाना पड़ता है, अपमान-तिरस्कार भोगना पडता है और सत्सततिके लाभोसे भी वचित रहना होता है। २ स्वपरवेरी वह है जो अपने बच्चोकी छोटी उम्रमें शादी करता है, जिससे उनकी शिक्षामे बाधा पडती है और वे सदा ही दुबल, रोगी तथा पुरुषार्थहीन-उत्साहविहीन बने रहते है अथवा अकालमे ही कालके गालमे चले जाते हैं । और उनकी इन अवस्थाप्रोसे उसको भी बराबर दुख-कष्ट भोगना पडता है। ३ स्वपरबैरी वह है जो धनका ठीक साधन पासमे न होने पर भी प्रमादादिके वशीभूत हुआ रोजगार-वधा छोड बैठता है - कुटुम्बके प्रति अपनी जिम्मेदारीको भुलाकर आजीविकाके लिये कोई पुरुषार्थ नहीं करता, और इस तरह अपनेको चिन्तामोंमे डालकर दुखित रखता है और अपने आश्रितजनों-बालबच्चों मादिको भी
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy