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________________ सकाम-धर्मसाधन ३२६ विकास ही सघ सकता है। जो मनुष्य धर्मकी रक्षा करता है - उसके विषयमें विशेष सावधानी रखता हुआ उसे विडम्बित या कलकित नही होने देता - वही धर्मके वास्तविक फलको पाता है । 'धर्मो रक्षति रक्षित ' की नीति के अनुसार रक्षा किया हुम्रा धर्म ही उसकी रक्षा करता है और उसके पूर्ण विकासको सिद्ध करता है । ऐसी हालत मे सकामधर्मसाधनको हटाने और धर्मकी बिडम्ब - नानोको मिटानेके लिये समाजमे पूर्ण प्रान्दोलन होनेकी ज़रूरत है, तभी समाज विकसित तथा धर्मके मार्ग पर अग्रसर हो सकेगा तभी उसकी धार्मिक पोल मिटेगी और तभी वह अपनी पूर्व गौरव गरिमाको प्राप्त कर सकेगा। इसके लिये समाजके सदाचारनिष्ठ एव धर्मपरायण विद्वानोको आगे आना चाहिये और ऐसे दूषित धर्माचररणो की युक्ति-पुरस्सर खरी-खरी आलोचना करके समाजको सजग तथा सावधान करते हुए उसे उसकी भूलोका परिज्ञान कराना चाहिये तथा भूलोके सुधारका सातिशय प्रयत्न कराना चाहिये । यह इस समय उनका खास कर्तव्य है और बडा ही पुण्यकार्य है । ऐसे आन्दोलन द्वारा सन्मार्ग दिखलानेके लिये समाजके अनेक प्रमुख पत्रोको अपनाना - उनका उपयोग करना चाहिये ।
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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