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________________ जैनी कौन हो तकता है ? ३११ व्यवहारेपर निर्भर है, लाजिमी नही-और धर्म दूसरी वस्तु है । दूसरे लोगोको जैनधर्ममें दीक्षित करनेके लिये हमें प्राय उसी सनातन मार्गपर चलना होगा जिस पर हमारे पूज्य पूर्वज और प्राचार्य महानुभाव चलते आये हैं और जिसका उल्लेख आदिपुराणादि आर्ष अन्थोंमे पाया जाता है' । हमारे लिये पहले ही से सब प्रकारकी सुगमताप्रोका मार्ग खुला हुआ है। उसके लिये व्यर्थ अधिक चिन्ता करने अथवा कष्ट उठाने की जरूरत नहीं है । अत हमको बिल्कुल निर्भय होकर, साहस और धैर्यके साथ, सब मनुष्योमें जैनधर्मका प्रचार करना चाहिये । सबसे पहले लोगोका श्रद्धान ठीक करना और फिर उनका आचरण सुधारना चाहिये । जैनी बनने और बनानेके लिए इन्ही दो बातोकी खास जरूरत हैं। इनके बाद सामाजिक व्यवहार है, जो देश कालकी परिस्थितियो-आवश्यकतामो और परस्परके प्रेममय सद्वर्तन आदि पर विशेष प्राधार रखता है। उसके लिए कोई एक नियम नही हो सकता। वह जितना ही निर्दोष दृढ तथा प्रेममूलक होगा उतना ही समाज और उसके धर्मकी स्थितिके लिये उपयोगी तथा हितकारी होगा। १ आदिपुराणमे तो म्लेच्छो तकको कुलशुद्धि आदिके द्वारा अपने बना लेनेकी-उन्हे क्रमश अपनी जातिमे शामिल कर लेनेकी-व्यवस्था की गई है । जैसा कि उसके निम्न वाक्यसे प्रकट है - स्वदेशेऽनक्षरम्लेछान प्रजाबाधाविधायिन. । कुलशुद्धि-प्रदानाद्यः स्वसाकुर्याधुपक्रम. ॥-पर्व ४२वा
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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