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________________ २६८ युगवीर-निबन्धाक्लो वर्तमान क्रियानोको 'सम्यक्चारित्र' न कहकर 'यात्रिक चारित्र' अथवा जड-मशीनो-जैसा आचरणक हना चाहिये। उनसे धर्म-फलकी प्राप्ति नही हो सकती, क्योकि बिना भावके क्रियाएँ फलदायक नहीं होती। ____ इसके सिवाय, जिधर देखिये उधर ही हिंसा, झूठ, चोरी, लूटखसोट मारकाट सीनाजोरी विश्वासघात, रिश्वत-घूस, व्यभिचार, बलात्कार, विलासप्रियता विषयाशक्ति और फूटका बाजार गर्म है, छल-कपट, दभ-मायाचार, धोखा, दगा, फरेब, जालसाजी और चालबाजीका दौरदौरा है; जूना भी कुछ कम नही, और सट्टने तो लोगोका बधना-बोरिया ही इकट्टा कर रक्खा है, लोगोके दिलोमे ईर्षा, द्वेष घृणा और अदेखसकाभावकी अग्नि जल रही है, आपसके वैर-विरोध, मनमुटाव और शत्रुताके भावसे सीने स्याह अथवा हृदय काले हो रहे है, भाई भाईमे अनबन, बाप बेटेमे खिचावट, मित्रो-मित्रोमे वैमनस्य और स्त्री-पुरुषोमे कलह है, चारो ओर अन्याय और अत्याचार छाया हुआ है, लोग क्रोधके हाथोसे लाचार हैं, झूठे मानकी शानमे हैरान व परेशान है और लोभकी मात्रा तो इतनी बढी हुई है तथा बढती जाती है कि दयाधर्मके माननेवाले और अपनेको ऊँच जाति तथा कूलका कहनेवाले भी अब अपनी प्यारी बेटियोको बेचने लगे हैं, उन्हे अपनी छोटी छोटी सुकुमार कन्यानोका हाथ बूढे बाबानोको पकडाते हुए जरा भी सकोच नही होता, जरा भी तरस या रहम नही पाता और न उनका वज्र हृदय ही ऐसा घोर पाप करते हुए धडकता या कांपता है । फिर लज्जा अथवा शरम बेचारीकी तो बात ही क्या है ? वह तो उनके पास भी नहीं फटकती । प्राय सभी जातियोमे कन्याविक्रयका व्यापार १ यस्मात् क्रिया प्रतिफलन्ति न भावशून्या । -कल्याणमदिर
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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