SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 260
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रसवर्ण और अन्तर्जातीय विवाह २४३ इन चार प्रधान जातियों अथवा वर्णोमेसे ही अग्रवाल, खंडेलवाल, नादि नवीन जातियोकी सृष्टि हुई है और इसीसे उन्हें उपजातियाँ कहते हैं। उनमे भी वृत्तिकी दृष्टिसे वर्ण भेद पाया जाता है। अस्तु। इन वर्गों में से प्रत्येक वर्णका व्यक्ति जब अपने ही वर्णकी स्त्रीसे विवाह करता है तो उसे सवर्णविवाह' और जब अपनेसे भिन्न वर्णके साथ विवाह करता है तो उसे 'असवर्णविवाह' कहते हैं। असवर्णविवाहके 'अनुलोम' और 'प्रतिलोम' ऐसे दो भेद हैं। अपनेसे नीचे वर्णवालोकी कन्यामोसे विवाह करना 'अनुलोमविवाह' और अपनेसे ऊपरके वर्णवालोकी कन्याप्रोसे विवाह करना 'प्रतिलोमविवाह' कहलाता है । यद्यपि इन दोनों प्रकारके असवर्ण विवाहोमे अनुलोमविवाह अधिक मान्य किया गया है परन्तु फिर भी सवर्ण विवाहके साथ भारतवर्षमे दोनो ही प्रकारके असवर्णविवाहोका प्रचार रहा है और उनके विधि-विधानो अथवा उदाहरणोंसे जैन तथा जैनेतर हिन्दू साहित्य भरा हुआ है। भगवज्जिनसेनाचार्य, प्रादिपुराणमे, अनुलोमरूपसे असवर्णविवाहका विधान करते हुए, स्पष्ट लिखते हैं - शूद्रा शूद्रेण वोढव्या नान्या स्वा ता च नैगम । वहेत्स्वा ते च राजन्य स्वा द्विजन्मा क्वचिच ताः॥ अर्थात्- शूद्रका शूद्रास्त्रीके सिवाय और किसी वर्णकी स्त्रीके साथ विवाह न होना चाहिये, वैश्य अपने वर्णकी और शूद्रवर्णकी स्त्रीसे भी विवाह कर सकता है, क्षत्रिय अपने वर्णकी और वैश्य तथा शूद्रवर्णकी स्त्रियाँ ब्याह सकता है और ब्राह्मण अपने वर्णकी तथा शेष तीन वर्षों की स्त्रियोका भी पारिणग्रहण कर सकता है। __ श्रीसोमदेवसूरि भी, नीतिवाक्यामृतमे, ऐसा ही विधान करते हैं । यथा - आनुलोम्येन चतुस्त्रिद्विवर्णकन्याभाजना ब्राह्मण-क्षत्रिय-विशः।
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy