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________________ असवर्ण और अन्तर्जातीय विवाह 'वर्ण' के चार भेद हैं--ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र । ये वर्ण इसी क्रमको लिये हुए हैं, और इनकी सत्ता यहाँ युगकी प्रादिसे चली आती है । इन्हे 'जाति' भी कहते है । यद्यपि जाति' नामक नामकर्मके उदयसे मनुष्यजाति एक ही है और उस मनुष्यजातिकी दृष्टि से सब मनुष्य समान हैं--मनुष्योके शरीरमे ब्राह्मणादि वर्णोकी अपेक्षा प्राकृति आदिका कोई खास भेद न होनेसे और शूद्रादिकोके द्वारा ब्राह्मणी आदिमे गर्भकी,प्रवृत्ति भी हो सकनेसे उनमे जातिकृत कोई ऐसा भेद नहीं है जैसा कि गौ और अश्वादिकमे पाया जाता है'- फिर भी वृत्ति अथवा आजीविकाके भेदसे मनुष्यजातिके उक्त चार भेद माने गये है। जैसा कि भगवज्जिनसेनके निम्न वाक्यसे सूचित होता है - मनुष्य जातिरेकैप जातिकर्मोदयोद्भवा । वृत्तिभेदाहितार्दोदा चातुर्विध्यमिहाश्नुते ।। ४५ ।। -आदिपुराण, पर्व ३८ वाँ । १ वर्णाकृस्यादिभेदाना देहेऽस्मिन्न च दर्शनात् । ब्राह्मण्यादिषु शूद्राद्य गर्भाधानप्रवर्तनात् ॥४६१।। नास्ति जातिकृतो भेदो मनुष्यारणा गवाश्ववत् । प्राकृतिग्रहणात्तस्मादन्यथा परिकल्पते ॥४६२॥ - उत्तरपुराण, ७४ वा पर्व
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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