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________________ २३८ युगबीर-निबन्धावली नामका व्यक्ति अपने पेटमे कटार मारकर मर गया था। इससे उसकी संततिका गोत्र 'कटारिया' प्रसिद्ध हुआ । ७ राँका तथा सेठिया गोत्र-काकू' नामका एक व्यक्ति बहुत दुर्बल शरीरका था इससे लोग उसे 'राँका' पुकारने लगे। उसे नगरसेठका पद मिला और इसलिये उसकी सतानका गोत्र 'राँका' तथा 'सेठिया' प्रसिद्ध हुआ। गोत्रोकी ऐसी कृत्रिम, विचित्र और क्षणिक स्थितिके होते हुए पूर्व पूर्व गोत्रोकी दृष्टिसे सगोत्र-विवाहोका होना बहुत कुछ स्वाभाविक है । इसके सिवाय,प्राय सभी जैनजातियोमे गोद लेने अथवा दत्तकपुत्र ग्रहण करनेका रिवाज है, और दत्तकपुत्र अपने गोत्रसे भिन्न गोत्रका भी लिया जाता है । साथ ही, यह माना जाता है कि उसका गोत्र दत्तक लेनेवालेके गोत्रमे परिणत हो जाता है उसकी कोई स्वतत्र सत्ता नहीं रहती--इसीसे विवाहके अवसर पर उसके गोत्रका प्राय कोई खयाल नहीं किया जाता और यदि कही कुछ खयाल किया भी जाता है तो वह प्राय उस दत्तकपुत्रके विवाह तक ही परिमित रहता है--उसके विवाहमे ही उसका पूर्व गोत्र बचा लिया जाता है--आगे होनेवाली उसकी उत्तरोत्तर सततिमें फिर उसका कोई खयाल नही रक्खा जाता और न रक्खा जा सकता है, क्योकि एक एक वशमे न मालूम कितने दत्तक दूसरे वशो तथा गोत्रोके लिये जा चुके है उन सबका किसीको कहाँ तक स्मरण तथा खयाल हो सकता है। यदि उन पर खयाल किया जाय - विवाहोंके अवसर पर उन्हे टाला जाय-तो परस्परमे विवाहोका होना ही प्राय असभव हो जाय । इसी तरह पर स्त्रियोके गोत्र भी उनके विवाहित होने पर बदल जाते हैं और उनकी प्राय कोई स्वतत्र सत्ता नहीं रहती । यदि उनकी स्वतत्र सत्ता मानी जाय तब तो एक कुलमें कितने ही गोत्रोका समिश्रण हो जाता है और सबको बचाते हुए विवाह करना और भी ज्यादा असंभव ठहरता है । साथ ही, यह
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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