SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 254
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गोत्र- स्थिति और सगोत्र विवाह २३७ किया । इससे राजाने कुटुम्ब सहित जैनधर्म ग्रहण किया और सूरिजीने उसका महाजन वश तथा 'कुकडचोपडा' गोत्र स्थापित किया । मंत्री भी धर्म ग्रहण किया और उसका गोत्र 'गरणधर चोपडा' नियत किया गया । कुकडचोपडा गोत्रकी बादको चार शाखाएँ हुईं जिनमें से एक 'कोठारी' शाखा भी है जो इस वशके एक 'ठाकरसी' नामक व्यक्तिसे प्रारम्भ हुई। ठाकरसीको राव चुडेने अपना कोठारी नियत किया था तमीसे ठाकरसीकी सतानवाले 'कोठारी' कहलाने लगे । २ धाडीवाल मोत्र - डीडो नामक एक खीची राजपूत धाडा मारता था । उसको वि० स० ११५५ मे जिनवल्लभसूरिने प्रतिबोध देकर उसका महाजन वंश और 'धाडीवाल' गोत्र स्थापित किया 1 ३ लालाणी श्रादि गोत्र - लालसिहको जिनवल्लभसूरिने प्रतिबोध देकर उसका 'लालाखी' गोत्र स्थापित किया और उसके पाँच बेटोसे फिर वाठिया, जोरावर, विरमेचा, हरखावत, और मल्लावत गोत्र चले । इसी तरह एक 'काला' व्यक्तिकी प्रौलादवाले काला' गोत्री कहलाये । ४ पारख गोत्र- पासूजीने एक ही रेकी परख की थी उसी दिनसे राजा द्वारा 'पारख' कहे जानेके काररण उनकी सतानके लोग पारखगोत्री कहे जाने लगे । ५ लुमावत आदि गोत्र - 'लू' के वशज 'लूरगावत' गोत्री हुए परन्तु बादको उसके किसी वशजके युद्धसे न हटने पर उसकी सततिका गोत्र 'नाहटा' होगया । और एक दूसरे वराजको किसी नवाबने 'रायजादा' कहा। इससे उसका गोत्र 'रायजादा' प्रसिद्ध हुआ । ६ रतनपुरा और कटारिया मोत्र - चौहान राजपूत रतनसिंहको, जिसने रतनपुर बसाया था, जिनदत्तसूरिने जैनी बनाकर उसका 'रतनपुरा' गोत्र स्थापित किया। इसके वशमें भारसिंह
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy