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________________ जाति-भेद पर श्रमितगति श्राचार्य २३१ सम्यग्दृष्टि हो सकता है। स्वामी समन्तभद्रने रत्नकरण्ड श्रावकाचारमें ऐसे चाण्डाल - पुत्रको 'देव' लिखा है - प्राराध्य' बतलाया है । अत ऐसे सम्यग्दर्शनप्राप्त नीच जातिके पुरुषोको भी श्रमितगति श्राचार्य श्रेष्ठ, कुलीन और अदीन लिखते हैं । यह है गुरोका प्रादरभाव, गुरणोके प्राविर्भावकी सद्भावना और सत्प्रेरणा । आचार्य महोदय के इन सब उद्गारो पर अधिक टीकाटिप्पणीकी जरूरत नही। वे इन जातिभेदोको किस दृष्टिसे देखते थे और उन्हे क्या महनव देते थे यह सब ऊपरके कथनोसे बिल्कुल स्पष्ट है । और इसलिये जो लोग समानवर्ण, समानधर्म, और समानगुरगशीलवाली उपजातियोमे भी अनुचित भेदभावकी कल्पना किये हुए है - परस्परमे रोटी-बेटीका सम्बन्ध एक करते हुए हिचकिचाते हैंउन्हे प्राचार्य महाराजके इन उद्गारोंसे जरूर कुछ शिक्षा ग्रहण करनी चाहिये और उस कदाग्रहको छोड देना चहिये जो धर्म तथा समाजकी उन्नति बाधक है । जो लोग कदाग्रहको छोड कर अन्तर्जातीय विवाह करने लगे हैं उनकी यह उदार तथा विवेक- परिरगति निसन्देह प्रशसनीय और अभिनंदनीय है । १ यह 'देव' का 'श्राराध्य अर्थ प्रभाचन्द आचार्यने रत्नकरण्डश्रावकाचारकी टोकामे दिया है।
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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