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________________ १८८ युगवीर-निबन्धावली कथनसे खूब समझ लेना चाहिये कि जैनदृष्टिसे परमात्माकी पूजा, भक्ति और उपासना परमात्माको प्रसन्न करने-खुशामद-द्वारा उससे कुछ काम निकालनेके लिये नही होती और न सासारिक विषय. कषायोका पुष्ट करना ही उसके द्वारा अभीष्ट होता है । बल्कि, वह खास तौरसे परमात्माके उपकारका स्मरण करने और परमात्माके गुणोकी-आत्मस्वरूपकी-प्राप्तिके उद्देश्यसे की जाती है। परमात्माका भजन और चिन्तन करनेसे-उसके गुणोमें अनुराग बढ़ानेसे-पापोसे निवृत्ति होती है और साथ ही महत्पुण्योपार्जन भी होता है, जो कि स्वत अनेक लौकिक प्रयोजनोका साधक है। इसलिये जो लोग परमात्माकी पूजा, भक्ति और उपासना नहीं करते वे अपने प्रात्मीय गुरगोसे पराङ्मुख और अपने आ मलाभसे वचित रहते है, इतना ही नही, किन्तु कृतघ्नताके महान् दोषसे भी दूषित होते है । अत ठीक उद्देश्योंके साथ परमात्माकी पूजा, भक्ति, उपासना और आराधना करना सबके लिये उपादेय और ज़रूरी है। मूर्ति-पूजा परमात्मा अपनी जीवन्मुक्तावस्था-अर्थात्, अर्हन्त-अवस्थामें सदा और सर्वत्र विद्यमान नहीं रहता, इस कारण परमात्माके स्मररणार्थ और परमात्माके प्रति आदर-सत्काररूप प्रवर्तनेके अवलम्बनम्वरूप उसकी अर्हन्त अवस्थाकी मूर्ति बनाई जाती है। वह मूर्ति परमात्माके वीतरागता, शान्तता और ध्यानमुद्रा आदि गुणोका प्रतिबिम्ब होती है । उसमे स्थापना-निक्षेपसे परमात्माकी प्रतिष्ठा की जाती है। उसके पूजनेका भी समस्त वही उद्देश्य है जो ऊपर वर्णन किया गया है, क्योकि मूर्तिकी पूजासे किसी धातुपाषाणका पूजना अभिप्रेत (इष्ट) नहीं है। ऐसा होता तो गृहस्थोके घरोमें सैकड़ो बाट बटेहडे धडे पसेरे आदि चोजें इसी किस्मकी पड़ी रहती हैं, वे उनसे ही अपना मस्तक रगडा करते और उन्हें प्रणामादिक किया करते ।
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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