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________________ युगवीर-निबन्धावली विवाह किया और उनका यह विवाह भी उस समय कुछ अनुचित नही समझा गया । बल्कि उस समय और उससे पहले भी इस प्रकारके विवाहोका श्राम दस्तूर था । अच्छे अच्छे प्रतिष्ठित, उच्चकुलीन और उत्तमोत्तम पुरुषोने म्लेच्छराजाप्रोकी कन्याप्रोसे विवाह किया, जिनके उदाहरणोंसे जैनसाहित्य परिपूर्ण है। अस्तु, इस विवाहसे वसुदेवजीके 'जरतकुमार' नामका एक पुत्र उत्पन्न हुआ जो बडा ही प्रतापी,नीतिवान और प्रजाप्रिय राजा हो गया है और जिसने अन्तको, राज-पाट छोडकर, जैनमुनिदीक्षा तक धारण की थी। इसी राजाके वशमे 'जितशत्र'नामका राजा हुआ,जिससे भगवान महावीरके पिताकी छोटी बहिन ब्याही गई । अब प्रियगुसुन्दरीके विवाहको लीजिये। प्रियंगुसुन्दरीसे विवाह प्रियगुसुन्दरीके पिताका नाम 'एणीपुत्र'था । यह एणीपुत्र ऋषिदत्ता नामकी एक अविवाहिता तापसकन्यासे व्यभिचार-द्वारा उत्पन्न हुअा था। प्रसवसमय उक्त ऋषिदत्ताका देहान्त हो गया और वह मरकर देवी हुई, जिसने एगी अर्थात् हरिणीका रूप धारण करके जङ्गलमे अपने इस नवजात शिशुको स्तन्यपानादिसे पाला और पालपोषकर अन्तको शीलायुध राजाके सुपुर्द कर दिया । इस प्रियगुसुन्दरीका पिता एगीपुत्र 'व्यभिचारजात' था, जिसको आजकलकी भाषामे 'दस्सा' या 'गाटा' भी कहना चाहिए। वसुदेवजीने विवाहके समय यह सब हाल जानकर भी इस विवाहको किसी प्रकारसे दूषित, अनुचित अथवा अशास्त्र-सम्मत नहीं समझा और इसलिये उन्होने बडी खुशीके साथ प्रियंगुसुन्दरीका भी पाणिग्रहण किया। १ शास्त्रोमे तो ब्राह्मण, क्षत्री, वैश्यके लिये 'शूद्र' तकको कन्यासे विवाह करना भी उचित ठहराया है, यथा -
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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