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________________ वसुदेवका शिक्षाप्रद उदाहरण १६३ विवाह हुमा, जिससे स्पष्ट है कि इस विवाहमें मोच तथा गोकी . शाखाओंका टालना तो दूर रहा,एक बंश और एक कुटुम्बका की कुछ खयाल नही रक्खा गया । वसुदेवजीने गोत्रादि-सम्बन्धी इन सब बातोंको कुछ भी महत्व न देकर, बिना किसी सकोचके प्रारती भतीजीके साथ विवाह कर लिया और उनका यह विवाह उस समय कुछ भी अनुचित नहीं समझा गया । इस विवाहसे अनेक सुप्रविष्ठित और बहुमान्य पुत्ररत्नोका उद्भव हुमा-देवकीने श्रीकृष्सा प्रतिरिक छह तद्भवमोक्षगामी पुत्रोको भी जन्म दिया। यह तो हुई देवकीसे विवाहकी बात, अब जराकी विवाह-वार्ताको लीजिये। बरासे विवाह जरा किसी म्लेच्छ राजाकी कन्या थी, जिसने गङ्गा तट पर वसूदेवजीको परिभ्रमण करते हुए देखकर उनके साथ अपनी इस कन्याका पारिणग्रहण कर दिया था। प० दौलतरामजीने, अपने हरिवशपुराणमें, इस राजाको 'म्लेच्छखण्डका राजा' बतलाया है और पगजाधरलालजी उसे 'मीलोंका राजा' सूचित करते हैं। वह राजा म्लेच्छखण्डका राजा हो या प्रार्यखण्डोद्भव म्लेच्छ राजा, और चाहे उसे भीलोका राजा कहिये, परन्तु इसमें सन्देह नहीं कि ब्रह आर्य्य तथा उच्चजातिका मनुष्य नहीं था । और इसलिये उसे मनाये या म्लेच्छ कहना मी अनुचित नहीं होगा । म्लेच्छोका प्राचार मामः तौरपर 'हिंसामें रति, मासभक्षणमे प्रीति और ज़बरदस्ती दूसरोकी धन-सम्पत्तिका हरना इत्यादिक' होता है, जैसा कि श्रीजिनसेनाचार्य, प्रणीत प्रादिपुराणके मिन्नलिखित वाक्यसे प्रगट है. म्लेच्छाचारो हि हिंसायां रतिर्मालाशतेऽपि च । बलात्परस्वहरण निर्द्ध तत्वमिति स्मृतम् ।। ४२-१८४॥ वसुदेवजीने, यह सब कुछ जागले हुए भी, बिना किसी भिमक और रुकावटके बड़ी खुशीके साथ इस म्लेच्छ-राजाकी उक्त कन्यास
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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