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________________ विवाह-समुद्दश्य — १५३, करते हैं वे सिर्फ अपने बच्चोका ही बुरा नहीं करते-उन्हीके जीवनको नहीं बिगाडते-; बल्कि समाजभरका अनिष्ट करते हैं, जगतमें अनेक आपत्तियोको जन्म देते हैं, और इसलिये उन्हें 'जगतका शान्तिभग-कर्ता' समझना चाहिए। और इसीलिये सच्चे माता पितामोका यह कर्तव्य होना चाहिए कि वे अपनी संतानके विवाहका नाम उस वक्त लेवे जबकि उसमे विवाहकी सपूर्ण योग्यताएँ पाजाय, जिससे वह विवाहके उद्देश्योको पूरा करती हुई अपने जीवनको सरस और आनदमय बना सके । इससे पहले उन्हे बराबर उसकी योग्यतामोको पूरा करनेकी--उसकी शारीरिक तथा मानसिक शक्तियोको बढानेकी-पूरी चेष्टा करते रहना चाहिए । साथ ही, यह भी समझ लेना चाहिए कि विवाह-जैसे महत्वके कार्यको एक 'खेल' या 'तमाशा' बनाना किसी प्रकार भी उचित नहीं है। जो लोग विवाहकी सपूर्ण योग्यताप्रोको प्राप्त किये बिना ही विवाहित हो चुके है उनका, अपने लिये, इस समय यही खास कर्तव्य होना चाहिए कि वे प्रस्तुत 'विवाह-समुद्दे श्य'को अच्छी तरहसे अध्ययन और मनन करके अपनी प्रवृत्तियोको जहाँ तक बने, बिल्कुल इसके अनुकूल बना लेवे, अपना लक्ष्य ऊँचा रक्खे और उन दश कर्तव्योका यथाशक्ति ज़रूर पालन करते रहे--उसमे कोई बात उठा न रक्खे-जो कुटुम्बोको सुव्यवस्थित और बलाढ्य बनानेके लिये बतलाये गये हैं। ___ समाजके शुभ-चिन्तकोको चाहिये कि वे प्रत्येक गृहस्थी और गृहस्थाश्रममे प्रवेशके इच्छुक व्यक्तियो-उसके उम्मीदवारो-तक इस विवाह-समुद्देश्यको पहुँचाएँ शिक्षा-संस्थानोमें भरती कराएँ और समाजकी प्रवृत्तिको इसके अनुकूल बनानेका जी-जानसे यत्न करे। इसीमें समाजका हित संनिहित है और उसी हितको लक्ष्यमें लेकर यह निबन्ध लिखा गया है।
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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