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________________ विवाह-समुद्देश्य १२६ बिना प्रयोजन भी-पानी पीता रहे या तृषा-वर्धक पदार्थोंको खाकर अपनी प्यास बढा लेवे । इसी तरह गृहस्थका विवाह-द्वारा कामसेवन करना उद्देश्य न होना चाहिए । काम-तृष्णाकी असह्य वेदना उत्पन्न होने पर-प्राकृतिकरूपसे कामका वेग बढने परउसकी अल्पकालिक शातिके लिए अथवा प्रकृतिकी तात्कालिक पुकारको पूरा करनेके लिये ही उसे सभोग करना चाहिए । “कामकी वेदनाका उत्पन्न न होना, कामतृष्णाका समूल नाश होजाना और कामको जीतने की अपनेमें शक्ति पैदा करना हो” उसका मुख्य उद्देश्य होना चाहिए । साथ ही, उसे अपनी शक्तिके अनुसार प्रतिपक्ष-भावनाप्रोसे-विषयोंसे ग्लानि और ब्रह्मचर्यसे अनुराग उत्पन्न करानेवाली विचारधारामोंसे-काम पीडाको जीतनेका अभ्यास करना चाहिए। उसका यह कर्तव्य कभी न होना चाहिए कि, कामकी शान्तावस्थामे भी, विनोद प्रादिके तौरपर, कामक्रीड़ा करता फिरे या कामोद्दीपक पदार्थोंका-सोते हुए कामदेवको जगानेवाले लड्डुप्रो आदिका - सेवन करके अपनी कामतृष्णाको उत्पन्न करे। जो गृहस्थ ऐसा करता है वह विवाहके उद्देश्यसे गिर जाता है और उसे तरह तरहकी यातनाएं भोगनी पडती हैं। ज़रूरत बिना ज़रूरत अधिक मैथुन करनेसे-वीर्यका दुरुपयोग करनेसे-उसकी शक्ति क्षीण होजाती है। वह अपने बलको यहांतक खो बैठता है कि बादको ( पीछेसे ) फिर बहुत कुछ पौष्टिक पदार्थोंका सेवन करने पर मी--अनेकों वैद्यो, हकीमो और डाक्टरोकी शरण में जानेपर भी-उसकी वह शक्ति वापिस नहीं आती और वह नपुसक बन जाता है, जैसा कि श्रीसोमदेवसूरिके इन वाक्योंसे प्रकट है. निकाम-कामकामात्मा तृतीया प्रकृतिर्भवेत् । (यशस्तिलक) स्त्रियमतिभजमानो भवत्यवश्यं तृतीया प्रकृतिः। (नीतिवा०) इसलिए विवाहके उद्देश्यको खूब ध्यानमें रखते हुए, गृहस्थोको चाहिए कि वे अपनी कामवासनाको परिमित रक्खे, इन्द्रियोका
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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