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________________ १२८ युगवीर-निबन्धावली नीय और प्रजासे धिक्कारका पात्र होता है,चोर-जार-पापी कहलाता है, अपने उद्देश्यसे गिर जाता है और उसे 'जगतका शांति-भग-कर्ता' -समझना चाहिए। इस विषयमे सोमप्रभाचार्यने 'सूक्ति-मुक्तावली' मे बहुत ही अच्छा लिखा है - दत्तस्तेन जगत्यकीर्ति-पटहो गोत्रे मषो-कूर्चकश्चारित्रस्य जलाञ्जलिर्गुण-गणारामस्य दावानल. । सकेत. सकलापदा शिषपुर-द्वारे कपाटो दृढ. शील येन निजं विलुप्तमखिल त्रैलोक्य-चिन्तामणि ॥ अर्थात्-जिस मनुष्यने अपने 'शीलवत' को जो तीन लोकका चिन्तामणि रत्ल है, भग कर दिया है उसने जगतमे अपकीतिका ढोल बजा दिया है अपने कुलमे स्याहीका पोता फेर दिया है, निर्मल चारित्रको जलाञ्जलि दे दी है, गुणसमूहरूपी बागीचेमे आग लगा दी है, बहुतसी आपदापोको बुलानेके लिए इशारा कर दिया है और मज़बूत किवाड़ लगाकर अपने मोक्षके दरवाजेको बन्द कर दिया है। इससे भले प्रकार समझमे आ सकता है कि 'शीलवत' को भग करना कितना बड़ा अपराध है । उद्देश्य-विनिर्देश __ अब यहाँ पर यह बतला देना जरूरी है कि, प्यासके रोगीका उद्देश्य 'पानी पीना' नहीं होता। उससे प्यासकी वेदना सही नहीं जाती, इससे मजबूरन ( लाचारीसे ) उसकी अल्पकालिक शान्तिके लिए जल ग्रहण करता है। उसका उद्देश्य होता है "प्यासका न उत्पन्न होना-तृषारोगका समूल नाश हो जाना" । साथ ही, वह यह भी चाहता है कि मुझमे प्यासको सहन करनेकी शक्ति उत्पन्न हो और उस शक्तिके अनुसार प्यासको सहन करनेकी चेष्टा भी करता है। उसका यह कर्तव्य नहीं होता कि प्यासको शान्तावस्थामें भी-जिस वक्त प्यास दबी हुई है उस वक्त भी-ख्वाहमख्वाह
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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