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________________ युगवीर-निबन्धावली वैशावी नगरीका राजा सुमुख भी परस्त्रीसेवमका त्यागी नही था। उसने वीरक सेठकी स्त्री बनमालाको अपने घरमें डाल लिया था। फिर भी उसने महातपस्वी करधर्म नामके मुनिराजको बनमालासहित माहार दिया और पूजन किया। यह कथा जिनसेनाचार्यकृत तथा जिनदासब्रह्मचारिकृत दोनो हरिवंश पुरायोंमे लिखी है। __ इसी प्रकार और भी सैकडो प्राचीन कथाएँ विद्यमान हैं, जिनमे पापियो तथा अप्रतियोका पापाचरण कही भी उनके पूजनका प्रतिबधक नहीं हुआ और न किसी स्थानपर ऐसे लोगोके इस पूजनकर्मको असत्कर्म बतलाया गया। वास्तवमे, यदि विचार किया जाय तो मालूम होगा कि जिनेद्रदेवका भावपूर्वक पूजन स्वय पापोका नाश करनेवाला है, शास्त्रोमे उसे अनेक जन्मोके सचित पापोको भी क्षण मात्रमे भस्म कर देनेवाला वर्णन किया है । इसीसे पापोकी निवतिपूर्वक इष्ट-सिद्धिके लिये लोग जिनदेवका पूजन करते है। फिर पापाचरणियोंके लिये उसका निषेध कैसे हो सकता है ? उनके लिये तो ऐसी अवस्थामे, पूजनकी और भी अधिक आवश्यकता प्रतीत होती है । पूजासार ग्रन्थमे साफ ही लिखा है कि - ब्रह्मनोऽथवा गोव्नो वा तस्कर सर्वपापकृत् । जिनाधिगधसम्पन्मुिक्तो भवति लत्क्षणम् ।। अर्थात्-जो ब्रह्महत्या या गोह या किये हुए हो, दूसरोका माल चुरानेवाला चोर हो अथवा इससे भी अधिक सम्पूर्ण पापोका करनेवाला भी क्यो न हो, वह भी जिनेद्र भगवानके चरणोका भक्तिभावपूर्वक चदनादि सुगध द्रव्योसे पूजन करनेपर तत्क्षरण उन पापोसे छुटकारा पानेमे समथ होजाता है । इससे साफ तौर पर प्रगट है कि * जिनपूजा कृता हन्ति पाप नानाभवोद्भवम् । बहुकालचित काष्ठराशि वन्हिमिवाखिलम् ॥६-१०३ ।। -धर्मम ग्रहश्रावकाचार
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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