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________________ युगवीर-निबन्धावली प्रधान कारण जैनियोका क्रमसे हास और इनमेंसे राजसत्ताका सर्वथा लोप हो जाना ही कहा जा सकता है- तथापि दक्षिण देशमे, जहाँपर अन्तमें जैनियोका बहुत कुछ चमत्कार रह चुका है और जहाँसे जैनियोका राज्य उठे हुए बहुत अधिक समय भी नही हुआ है, इस समय भी ऐसे जिनमदिर विद्यमान हैं जिनके शिखरादिकमे जिनप्रतिमाएँ अकित हैं। ___ इस प्रकार ब्राह्मण, क्षत्रिय,वैश्य और शूद्र, चारो ही वर्णके सब मनुष्य नित्यपूजनके अधिकारी हैं और खुशीसे नित्यपूजन कर सकते हैं। नित्यपूजनमे उनके लिये यह नियम नही है कि वे पजकके उन समस्त गुणोको प्राप्त करके ही पूजन कर सकते हो, जो कि धर्मसग्रहश्रावकाचार और पूजासार ग्रन्थोमे वर्णन किये हैं । बल्कि उनके बिना भी वे पूजन कर सकते हैं और करते है । क्योकि पूजकका जो स्वरूप उक्त ग्रन्थोमे वर्णन किया है वह ऊंचे दर्जेके नित्यपूजकका है और जब वह स्वरूप ऊँचे दर्जे के नित्यपूजकका है तब यह स्वत सिद्ध है कि उस स्वरूपमे वणन किये हुए गुणोमेसे यदि कोई गुण किसीमे न भी होवे तो भी वह पूजनका अधिकारी और नित्यपूजक हो सकता है। दूसरे शब्दोमे यो कहिये कि जिनके हिंसा,झूठ,चोरो, कुशील (परस्त्रीसेवन) परिग्रह इन पच पापो या इनमेसे किसी पापका त्याग नहीं है, जो दिग्विरति आदि सप्तशीलव्रत या उनमेंसे किसी शीलवतके धारक नहीं हैं, अथवा जिनका कुल और जाति शुद्ध नहीं है या इसी प्रकार और भी किसी गुणसे जो रहित है, वे भी नित्यपूजन कर सकते हैं और उनको नित्यपूजनका अधिकार प्राप्त है। यह दूसरी बात है कि गुणोकी अपेक्षा उनका दर्जा क्या होगा? अथवाकी फल प्राप्तिमें अपने अपने भावोकी अपेक्षा उनमे क्या कुछ न्यूनाधिकता ( कमी बेशी) होगी और वह यहाँपर विवेचनीय नहीं है। यद्यपि आजकल अधिकांश ऐसे ही गृहस्थ जैनी पूजन करते हुए
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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