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________________ जिन पूजाधिकार मीमासा न०१० से १६ तक जो प्रतिष्ठाचार्यका स्वरूप दिया गया है, उसमेंभी"कल्याणागः, रुजा हीन, सकलेन्द्रिय, शुभलक्षण सम्पन्न, सौम्य - रूपः, सुदर्शनः, विप्रो वा क्षत्रियो वैश्य, विकर्म करणोऽभितः, ब्रह्मचारी गृहस्थो वा सम्यगदृष्टि, निकषाय, प्रशान्तात्मा, वेश्यादिव्यसनोक्तिः, दृष्टसृष्टकिय, विनयान्वित, शुचि प्रतिष्ठाविविवित्सुधी, महापुराणशास्त्रज्ञ, न चार्थार्थी, न च द्वेष्टि , ८७ इत्यादि विशेषरण पदोसे प्रतिष्ठाचार्य के प्राय वे ही समस्त विशेषरण वर्णन किये गये हैं, जो कि जिनसहिता मे पूजकके और धर्मसग्रहश्रावकाचार तथा पूजासार ग्रन्थोमे पूजकाचार्य के वर्णन किये हैं। यह दूसरी बात है कि किसीने किसी विशेषरणको सक्षेपसे वर्णन किया और किसीने विस्तारसे, किसीने एक शब्दमे वर्णन किया और किसीने अनेक शब्दोमे, अथवा किसीने सामान्यतया एकरूपमें वर्णन किया और किसीने उसी विशेषरणको शिष्योको अच्छी तरह समझानेके लिये अनेक विशेषरणोमे वर्णन कर दिया, परन्तु श्राशय सवका एक है प्रसिद्ध है कि जिनसहितामे जो पूजकका स्वरूप वर्णन किया है वह वास्तवमे प्रतिष्ठादिविधान करनेवाले पूजक अर्थात् पूजकाचार्य या प्रतिष्ठाचार्यका ही है । I इस प्रकार यह सक्षिप्त रूपसे, प्राचरण - सम्बधी कथनशैलीका रहस्य है । धर्म सग्रह श्रावकाचार और पूजासार ग्रन्थमे जो, साधारणनित्यपूजकका स्वरूप न लिखकर, ऊँचे दर्जेके नित्यपूजकका ही स्वरूप लिखा गया है उसका भी यही काररण है । यद्यपि ऊपर यह दिखलाया गया है कि उक्त दोनो ग्रन्थोमे जो पूजकका स्वरूप वर्णन किया गया है वह ऊँचे दर्जे के नित्य पूजकका स्वरूप होनेसे और उसमे शूद्रको भी स्थान दिये जानेसे शूद्र भी ऊँचे दर्जेका नित्यपूजक हो सकता है तथापि इतना और समझ लेना चाहिये कि शूद्र भी उन समस्त गुरणोंका पात्र है जो कि, नित्यपूजकके स्वरूपमें वर्णन किये गये हैं और वह ११ वी प्रतिमाको
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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