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________________ । युगवीर निबन्धावली का फल न चाप्नोति नैव कारयिता ध्रुवम् । ततस्तलक्षणश्रेष्ठ. पूजकाचार्य इष्यते ।। १५४ ॥ पूर्वोक्तलक्षणैः पूर्ण पूजयेत्परमश्वरम् । तदा दाता पुरं देशं स्वयं राजा च वर्द्धते ।। १५५ ।। अर्थात्-यदि इन दोषोका धारक पूजकाचार्य कहीपर प्रतिष्ठा कराबे, तो समझो कि देश, पुर, राज्य तथा राजादिक नाशको प्राप्त होते हैं और प्रतिष्ठा करने और करानेवाला दोनो भी अच्छे फलको प्राप्त नहीं होते, इसलिये उपयुक्त उत्तम लक्षरणोंसे विभूषितही पूजकाचार्य (प्रतिष्ठाचार्य) कहा जाता है । ऊपर जो जो पूजकाचार्यके लक्षण कह पाये हैं, यदि उन लक्षरणोंसे युक्त पूजक परमेश्वरका पूजन (प्रतिष्ठादि विधान) करे तो उस समय धनका खर्च करनेबाला दाता, पुर, देश तथा राजा ये सब दिनोदिन वृद्धिको प्राप्त होते हैं । पूजासार ग्रन्थमे भी, नित्य पूजकका स्वरूप कथन करनेके अनन्तर श्लोक न०१६ से २८ तक पूजकाचार्यका स्वरूप वर्णन किया गया है। इस स्वरूपमे भी पूजकाचार्यके प्राय वे ही सब विशेषण दिये गये हैं जो कि धर्मसग्रहश्रावकाचारमे वर्णित है और जिनका उल्लेख अपर किया गया है। यथा "लक्षणोद्भासी', जिनागमविशारद ,सम्यग्दर्शनसम्पन्न., देशसयमभूषित वाग्मी, श्रुतबहुग्रन्थ., अनालस्य , ऋजु, विनयसयुत, पूतात्मा, पूतवागवृत्ति , शौचाचमनतत्पर , सांगोपांगेन सशुद्ध लक्षणलक्ष्यवित, नीरोगी, ब्रह्मचारी च स्वदारारतिकोऽपि वा, जलमंत्रव्रतस्नात , निरभिमानी, विचक्षण', सुरूपो, सक्रिय , वैश्यादिषु समुद्भव" इत्यादि। इसी प्रकार प्रतिष्ठासारोद्धार ग्रन्थके प्रथम परिच्छेदमे श्लोक १ शरीरसे सुन्दर हो २ पापाचारी न हो ३ मच बोलनेवाला हो तथा नीच क्रिया करके प्राजीविका करनेवाला न हो। -
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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