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________________ (४२) महामहोपाध्याय श्री यशोविजयजी कृत. अर्थ-परतीर्थी मुर तेहनी प्रतिमानी के० अन्यतीर्थी तथा अन्यतीर्थीना देवनी प्रतिमानी, नविवारी के० नमषानो निषेध करयो, तेणे के० तेहज कारणे, मुनि जिन प्रतिमा तमी के मुनिने तथा जिनप्रतिमाने वंदन नति निरधारी के० वंदना नमस्कारनो निरधार करथो. एटले ए भाव जे, अन्यतीर्थीने चंदनानो निषेध करयो; एटले मुनिने वंदना करु एम आव्युज. एमां मूर्खने पण शंका न उपजे. तथा पूर्व अंबडने आलावे अन्यवीयर्थीनो निषेध अने स्वतीर्थीनी हा एम वेवडो आलावो कोज छे, ते पण मूढो समजता नथी. इति भाव ॥५॥ चली कुमति एम कहे छे जे चैत्यशब्दे मुनि कहीए, एटळे अन्यतीर्थीनां ग्रह्मां चैत्य के० मुनि एहवो अर्थ मरडे छे. वेने उचर कहे छे. परतीर्थीए जे परिग्रह्या । मुनि तेतो परतीर्थीरे ॥ त्रण शरण माहे चैत्य ते। कहे प्रतिमा शिव अर्थारे ॥शा०॥६॥ अर्थ-परती ए जे परिग्रयां मुनि के जे मुनि परती ए ग्रह्यां एटले अन्य तीर्थीओमां गया ते तो परतीर्थी के० ते मुनि तो परतीर्थीज कहीए, एटले परतीर्थीने चंदना नहीं कर तेहमा आवी गया ते माटे चैत्य शब्दनो मुनि अर्थ ते खोटो करे छे, ते उपर कहे छे. पण शरणमांहे चैत्य ते कहे पतिमा शिव अर्थी के० मोक्षअर्थी त्रण शरणमां चैत्य ते प्रतिमा छे एम कहे छे. एटले ए भाव जे भगवतीसूत्र मध्ये अमरकुमारना देवो सोधर्म देवलोक लगे जाय छे, त्यारे एक अरिहंत, वीजुं चैत्य अने त्रीजु अणगार ए अणनां शरण करे छे, तेहमा अरिहंत १ चैत्य २ अने अणगार ३ ए त्रण कहां छे. जो चैत्य के मुनि होत वो अणगार जूदा केम कहा? इति भाव. हवे ते श्री भगववीसूत्रनो आलावो लखीए छैए.-"नन्नत्य अरिहंते वा अरिहंवचेइयाणि वा भाविअप्पणो अणगारस्स वा णिस्साए उर्दू उप्पयंति नाव सोहम्मो कप्पो ॥" अस्यार्थ-ननत्य के० न अन्यत्र ए त्रण टालीने बीजी रीते जइ न शके. अरिहंते वा के अरिहंतनी निश्रा १ तथा, अरिहंतचेइयाणि के० अरिहंतनी प्रतिमा २ तथा, भाविअप्पणो के० संयम तपने विषे आत्मा भाव्यो छे जेणे, एवा, अणगारस्स के० अणगारनी निश्रा विना, उड़े उप्पयंति के० पर्व उतपते एटले ए निश्रा विना उंचा जइ न शके-भाव सोहम्मो कप्पो के० यावत्सौधर्म देवलोक लगे जइ न शके ॥ इति गाथार्थ ॥६॥ ___ अहीयां कोइक कुमति एम पूछे छे जे "कोण श्रावके देहेरा कराव्यां? " तेने कहिए जे श्री समवायांगसूत्रमा सर्वसूत्रनी हुंडी छे तेमां श्री उपासकदशांगनी हुंडी मध्ये कई छे ने “दशे श्रावकनां चैत्य तथा धर्माचार्य अने उधान कही." अहींयां साधु तथा प्रधान जूदा कयां छे, माटे चैत्य शब्दें मतिमा तथा देहेरांज ठरशे. तथा यधपि आजकालना दोषे करी सातमा अंगमा ए वावोनां पाठ विच्छेद गया छे, चोपण समवायांगनो पाठ
SR No.010663
Book Title125 150 350 Gathaona Stavano
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDanvijay
PublisherKhambat Amarchand Premchand Jainshala
Publication Year
Total Pages295
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, & Religion
File Size14 MB
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