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________________ (३४) महामहोपाध्याय श्री यशोविजयजी कृत. देवीण य के देवीओने, अच्चणिज्जाओ के० अर्चवा योग्य छे. वंदणिज्जाओ के० वांदवा योग्य छे. णमराणिज्जाओ के नमस्कार करवा योग्य छे. पूणिज्जाओ के० पूजवा योग्य छे. सक्कारणिजाओ के सत्कार करवा योग्य छे. सम्माणणिज्जाओ के० सन्मान करवा योग्य छे. कलाणं मंगलं के० कल्याणकारी, मंगलकारी. देवयं चेइयं के देवताना चैत्यनी परे. पजूवासणिजाओ के० सेवा करवा योग्य, भवंति के० छे. से तेणटेणं अजो एवं बुच्चइ के० हे आर्य, ते माटे एम कहीए छैये. णो पभू जाव विहरित्तए के नथी समर्थ, यावत् देवीओ साथे भोग भोगववाने. फरी पूछयु जे, चमरो असुरकुमार चारचंचा राजधानीने विषे सुधर्मा सभामां चमरसिहासनने विषे वेठो. चउसट्रिए सामाणियसाहस्सीहि के. चोसठ हजार सामानिक देवता साणे, तायत्तीसाए के० तेत्रीश त्रायत्रिंशक साथे, नाव अहि असुरकुमारेहि, इत्यादिक मुगम छे. इत्यादि भगवतीमूत्रे शतक दशमे उद्देशे पांचमे. इहां परिचारणशुद्धि के० नाट्य पूजामांहे स्त्रीशब्द श्रवणादिक परिचारण करे, पण मैथुन संज्ञाए सुधर्मासभामां शब्दादिक न सेवे. ए रीते जेम चमरेंद्रलगे एटले भवनपति, व्यतर, ज्योतिपी, वैमानिक तथा तेहना लोकपालना आलावा छे. ते सर्व अर्थी होतो जोज्यो. ___ हवे अहींयां कोइ पूछे जे भगवतीसूत्रमा तो एटलं कडं जे "मुधर्मासभामां दाढायो छे, माटे विपय वात न करे पण ते करत आशातना थाय, एम क्यां का छे?" एवी मूर्खनी आशका धरीने लखीए छैए जे सांभल, श्री उववाइ प्रमुख सूत्रमाहे अनाशातना विनय कह्यो छे, ते सर्व परमारथथी जोतां अरिहंतनोज विनय जाणतो. ___ हवे एवा अधिकार सांभलीने ते कुमति वोल्या जे "देवता तो अविरति, अपञ्चखाणी छे, नोपम्मिया छे. ए देवतानी करणी कोण लेखामां गणे छे ? ते माटे ए देवताए एटलां वानां करयां छे, पण अमे तो एनी करणी मानवा नथी." एम देवताने नोधम्मिा कही कहीने निदे छे तेने शिखामण दिए छे. समकितदृष्टि सुर तणी | आशातना करशे जेह ॥ लालरे ।। दुर्लभवोधि ते थशे। ठाणांगे भाख्यु एह ॥ लालरे ॥ तु०॥१९॥ अर्थ-सभ्यदृष्टि मुरतणी के० सन्यग्दृष्टि देवतानी, आशातना करशे जेह के जे पाणी आशावना करशे, अवर्णवाद वोलशे, दुर्लभवोधि ते थशे के ते प्राणी दुर्लभवोषि था. एटले आगल वोधि वीजनो सामग्री दोहली मलशे. इति भाव. ठाणांगे भाख्यु एह के० एवी वात ठाणांगसूत्र जे त्रीशुं अंग तेमां कही छे. यदुक्तं-"पंचहि ठाणेहिं जीवा दुल्लहवोहियत्ताए कम्म पकरेंति तं जहा अरिहंताणं अवण्णं वयमाणे १ अरिहंतपण्णत्तस्स धम्मस्स अवण्णं वयमाणे २ आपरियउवज्यायागं अवण्णं वयमाणे ३ चाउवण्णस्स सघस्स अवण्णं वयमाणे ४ विवकतववंभचेराणं देवाणं अवणं वयमाणे ५" व्याख्या-पंचहि
SR No.010663
Book Title125 150 350 Gathaona Stavano
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDanvijay
PublisherKhambat Amarchand Premchand Jainshala
Publication Year
Total Pages295
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, & Religion
File Size14 MB
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