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________________ महामहोपाध्याय श्री यशोविजयंजी कत. खोटी खोटी बातो कही भ्रम घाछे छे ? संशयमां | पाडे छ? जे तु कहेछे तेम कहेवा मात्र होय तो समवायांगमूत्रमां एवो पाठ केम कहे ? इति भाव. यथा-" लवणेणं समुहे सत्तरजोयणसहस्साई सन्बग्गेणं पन्नत्ता। इमीसेणं रयणप्पभाए पुढवीए षड्समरमणिजाओ भूमिभागाओ साइरेगाई सत्तर जोयणसहस्साई उड्ढे उप्पडता तओ पच्छा चारणाणं तिरिपगई ॥” इति समवायांगे ॥ एनो अर्थ-लवणसमुद्र 'सत्तरजोयण सहस्साई के०सचर हजार जोजन 'सन्नग्गेगे' के सर्व थइने कयो छे. एक हजार उंडो, सोल हजारनी उपर शिखा. एवं १७००० 'इमीसेणं रयणप्पभाए पुढवीए' के०ए रत्नममा पृथ्वीथकी 'बहुसमरमणिजाओ भूमि भागाओं' के० घणी सरखी एटले वरावर रमणीक भूमि भाग थकी, एटछे मेरुनी धरतीयकी, 'साइरेगाई सत्तरजोअणसहस्साई उद उप्पइत्ता के सचरहजार जोजन शारा ऊर्ध्व जईने पच्छा केपछी 'चारणाणं तिरियगई के चारणमुनिनी नीला गति प्रवते. ते माटे भगवतीमूत्रनो पाठ करवारूप छे, पण कहेवारूप नयी. इति भाव. इति द्वाविंशतितम गायार्य ॥२२॥ हवे ए आलावामा चेइआई वैदे का, ते उपर कुमति चैत्यशब्दनो अर्थ ते ज्ञान कहे छे. तेह आशंका लावीने उत्तर वालवा गाया कहे हे. चैत्यशब्दनो ज्ञान अरथ ते । कहो करवो कुण हेते ॥ ज्ञान एक ने चैत्य घणांछे । भूले जड संकेतरे | जि. तु० २३ ॥ अर्थ-चैत्य शब्दनो जे ज्ञान अर्थ करो छो, ते शा हेतुए करयो ? पाघरो अर्थ चैत्य के जिन घर अयवा जिनपतिमा. यतः-"चैत्यं जिनौकस्तदिवं चैत्या जिनसभातरुः ॥" इत्यनेकार्य संग्रहे एवो अर्थ मूकीने चैत्य के ज्ञान एवो अर्थ शा माटे फरवो पडे है? इति मात्र ज्ञान एक ने चैत्य घणां छे के० जान तो एक छे, अने चैत्य घणां छे, तेमाटे भूले के० ते अर्थ करतां भूले छे. शामाटे भूले छे? ते कहे छ. जडसंकेते के० मूर्खसंकेते, एटले शुद्ध गुरु परंपरा आवी होय तो निपुण संकेत होय, पण निगुरुना संकेत ते मूर्खज होय. इति गाया अक्षरार्थ. अथ भावार्य. ते कुमति एम कहे छे जे, “विद्याचारण जंघाचारण मुनिए नंदीवर प्रमुखनी वातो सिद्धांतमा सांभली ते सांभली हृदयमा कौतुक उपन्यु, जे ए बात केम हशे ? आपणी नजरे जोइए." एम विचारीने नंदीश्वरादिकने विषे जोया गया. त्यां जेम आगममां सांभल्युं तेम नजरे दीडं, ते वारे प्रभुना ज्ञानतुं बहुमान भाख्यु जे “धन्य प्रभुना मानने" एम कहीने प्रभुना ज्ञानने पगे लागे. चेइआई बदइनो ए अर्थ छ, एम कुमति कहे छे. नेनो उत्तर वाल्यो जे, मूर्ख व्याकरण प्रमुख भण्या विना शुं समजे? चेइआई के चैत्यानि ते द्वितीया बहुवचन छे, हवे जो ज्ञानने पगे लाग्या होय तो बहुवचन सूत्रकार शाने माटे कहे? ज्ञान तो एक छे. एवी वातो मूर्ख 'जाणे? इवि.
SR No.010663
Book Title125 150 350 Gathaona Stavano
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDanvijay
PublisherKhambat Amarchand Premchand Jainshala
Publication Year
Total Pages295
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, & Religion
File Size14 MB
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