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________________ दोदो गावातुं स्वजन, ( १५९) 'आदाय' के ग्रहीले. १ पछी काउस्सग्गमांहे, आभोत्ता के उपयोग - देइने, नीसेस के ? - सघलाए, 'अइय़ारं' के अविचारने, 'जहकमं' के यथा अनुक्रमे अतिचारने चिंतचे. 'गमणागमृणे'-के०जातां आवतां; 'चेव के: निश्चये 'भत्तपाणे अ' के भात पाणीने विषे, 'संजयमुक्ति. २ 'उज्जुपन्नों' के सरल - १ज्ञावालो, 'अणुव्विरगो के उद्वेगरहित, 'अव्वक्खितेण - चे: असा के० सावधान- मने करी काउस्सग पारीने, 'आलोए, गुरुसगासे के गुरुनी 'समोपे आलोए, 'जं- जहा- गहियं के०जे जेम लीधो होय ते तेम.. ॥३॥ एम. करतां कदाचित्- '-- सम्ममालोइयं-हुज्जा- के० रुडी पेरे आलोयुं न होय, पुर्वि पच्छावि-जं कर्ड के० पूर्वे आ-हारादिक, होय ते पछे कहेवाणु होय, अथवा पछी ग्रधुं - होय ते पूर्वे कहेवाणं होय, 'जं-कड' के० जे-एम- कीधां तथा पूर्व कर्म दोष पश्चात् कर्म दोष लाग्या होय, तेनेः, 'पुण्ो परिक्रमे- के? फरी - परिकमे तस्स के ० ते सूक्ष्मअतिचारने, वोसिद्धो. के० ते कायाने वोसिरावी, चिंतए इमं के एम चिंतवे.- ए- चार गायानो अर्थ हवे एवो भगवतीसूत्रनो पाठ सांभलीने कुमतिं बोल्यो: कहे कोइ 'ए कहेवा मात्रज | कोई न गयो नवि जाशे ॥ " नहीं तो लवणशिखा मांहे जातां । केम आराधक थाशेरें ? ||जि० तु० २१|| अर्थ- कोइक कुमति एम कहे छे जे कहेंबामात्रज के० ए भगवतीसूत्रमां चारणऋषितुं नाम देने पण वे- कहेनारूप जाणवुं. पण कोइ न गयो- के० एरीते कोइ अती काले गयो नथी, तथा नवि जाशे के० अनागत काले कोइ जाशे पण नहीं. नेनो हेतु कुमति देखाडे छे. नहीं तो के' जे में कहां तेम न होय तो लबणशिखामां जातां के० लवणसमुद्रंनी शिखामां थइने जातां केंम आराधक याशे के० अपकायनी विराधना करी ने जतां आराधक कैम थाशे ? इति गाया अक्षरार्थ. हवे भावार्थ कहे छे, जे जंबूद्वीपने पछवाड़े वे लाख योजन एक दिशाए पहोलो एवों चारे दिशाए फरतो लवणसमुद्र छे,ते लवणमां सोल हजार योजन पाणी उंच चोफेर छे, ते पाणीमाथी थईने मुनि केज जाय ? अने जाय तो आराधक केम थाय ? तथा बीजों कोई मार्ग 'जवानो, नथी, ते माटे कहीए छैए के चारणमुनिनी बात ते भगवतीसुत्रमां कहेवारूप छे, पण करवारूपं नयीं ॥२१॥ - तिने आगली, गाथामा उत्तर दे सन्तर: सहस्त जोयण- जई. उंचा। चारण- ती चाले || समवायांग प्रगटः पाठ ए । शुं कुमति भ्रम घालेरे ? || जि० तु० २२ ॥ ? • अर्थ - सत्तर- सहस्स जोयण के सत्तर हजार योजन, जई उँचा के० उंचा जईनें, चारण ती चाले के० ते चारणमुनि ती जाए छे. एम. ए. रीते श्रीसमवायांगसूत्रम मगट पाठ' छें, तो कुमति भ्रम घाले के० हे कुमति, कुत्सितं मतिना धर्णी भोला लोकने ... वच सुरेंद्रश्चामी स.
SR No.010663
Book Title125 150 350 Gathaona Stavano
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDanvijay
PublisherKhambat Amarchand Premchand Jainshala
Publication Year
Total Pages295
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, & Religion
File Size14 MB
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