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________________ (२४) महामहोपाध्याय श्री यशोविनयनी कृत। व्याख्या-ए श्रीजिनवर देवनी पूजा अर्चा सेवना देखी करी वीजा ध्यानादिके भावे भव्यपाणी भवजल तरीने छ काय रक्षक कहीए. एहवो भाव सम्यकदृष्टिने पूजामाहे वर्ते हे, ते केवली जाणे छे. अतएव कायवचनमनोयोग प्रधानपणे समंतभद्रा, सर्व मंगला, सर्वसिद्धिफला-ए त्रिविध पूजा होय. तेहमां चरणज परमश्रावकने कहीए छए. ॥११॥ जल तरतां जल उपर यथा, मुनिने दया न होए वृथा । पुष्पादिक उपर तिम जाण, पुष्पादिक पूजाने ठाण ||९२|| व्याख्या-यतिने कारणे जल तरतां जल जोव उपर दया परिणाम जेम फोक नथी. तेम पुष्पादिक पूजाने ठामे श्रावकने पुण्यादि जीव उपर दयाना परिणामनो अनुबंध भाजतो नथी एम जाणीए ॥ ९२ ।। ते मुनिने नहीं किम पूजना, एम तुं शु चिंते शुभ मना । रोगीने औषध सम एह, निरोगी छे मुनिवर देह ॥ ९३ ॥ व्याख्या-जो निरवध जिनपूजा कही वो यति केम न करे? एम तुं शुभमना मुग्य भावयको शुं चिंतवे हे ? जेह माटे ए जिनपूजा रोगीने औपध समान छे. गृही तो मलीनारंभ रोगवंत छे, ते उपशमाववानुं ए मुख्य औषध छे. अने मुनिवर वोसर्व सावधानिवृत्त हे, ते रोगरहित रोग औपघ केम करे? ॥ ९३ ॥ ॥ ढाल नवमी॥ प्रयम गोवालातणे भवेजी ॥ ए देशी॥ भावस्तव मुनिने भलोजी, वेउ भेदे गृही धार। श्रीजे अध्ययने कह्योजी, महानिशीथ मझार ॥ शुणो जिन तुझ विण कवण आधार ॥ ए आंकणी ॥९॥ व्याख्या-मुनि-साधुजनने भावस्तवनादिक करवो ते भलो छे. "भावक्षणमुग्गविहारयाय दबवणं तु जिणपूआ। पदमा जडणं दुण्ह वि, गिहीण पढमचिय पसत्या॥॥" एवं श्रीमहानिशीयसूत्रमध्ये त्रीजे अध्ययने या छे. सांभलो हे जिन श्री सीमंघर देव, तारा - विना कोण आधार ? ॥ ९४ ॥ वली तिहां फल दाखियुंजी, द्रव्यस्तवतुंरे सार। स्वर्ग वारमुं गेहिनेजी, एम दानादिक चारं ॥ शुणो० ॥९५ ।।.
SR No.010663
Book Title125 150 350 Gathaona Stavano
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDanvijay
PublisherKhambat Amarchand Premchand Jainshala
Publication Year
Total Pages295
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, & Religion
File Size14 MB
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