________________
-
सवासी गायार्नु स्तवन
(१५) तुरंग चढी जेम पामिएजी, वेगे पुरंनों पंथ । मार्ग तेम शिवना लहेंनी, व्यवहार निग्रंथ ॥ सो० ॥५६॥ व्याख्या-तुरंग के० घोडा उपर आरोहीने जेम वेगे पुरनो पंथ पामीए, तेम व्यवहारे करी निग्रंथ शिवनो मार्ग लहे. एटले हेतु निश्चय ते व्यवहारज ठहेराणो. ॥ ५६ ॥ फलसिद्धि काले साधनंनी अपेक्षा नथी, ए मोटे साधनहुँ अंसाधनपणुन होय,
ते देखाडे छे. महोल चढंतां जेम नहींजी, तेह तुरंगर्नु काज। सकल नहीं निश्चय लहेजी, तेम तनु किरिया साज॥सोगा५७॥ व्याख्या-महोल चढतां जेम तेह तुरंगर्नु काज नहीं, तेम निश्चय लहे थके तनु क्रियानो साज सफल नहीं. | काव्यम् मालिनी छैद:-"व्यवहरण नयः स्याधयपि मापदव्यामिह निहितपदानां हंत हस्तावलंवः । तदपि परममयं चिचमत्कारमात्र, परविरहितमंतः पश्यते नैप किंचित् ॥१॥" ॥ ५७ ॥
निश्चय नवि पामी शकेजी, पाले नवि व्यवहार | पुर्ण्यरहितं जे पंहवाजी, तहनो कुणं आधार । सो० ॥५८ .
व्याख्या-निश्चयभाव पामी न शके, अने व्यवहार पाले नहीं, एहवा जे पुण्यरहित जीर्व, तेहनो कोण आधार ? अर्थात् कोइ नहीं. ए भाव. ॥ ५८ ॥
हेम परिक्षा जेमें हुएजी, सहत हुशातन ताप । ज्ञान दशां तेंम परखीएजी, जिहां बहु किरिया व्याप ॥सौगों व्याख्या-हेम के० सोवर्णनी परीक्षा जेम हुताशन के० अमिनो ताप सहेतांज थाय, तेम ज्ञानदशा तिहां परखीए के. ज्या बहु क्रियानो व्याप होय. ज्ञानीने क्रिया खेदादिक रहित असंग भूपण रूपज छे. ॥ ५९ ।।
आलंबन विण जेम पडेजी, पामी विषमी वाट । मुग्ध पडे भवकूपमांजी, तेम विण किरिया घाट ।सो० ॥३०॥
ध्याख्या-लवन विना जेम विपम वाट गादिकनी पामी, तेने विषे पुरुष,पडे, तेम क्रियाना घाट विना मुग्ध के० अज्ञानी जीवो भवकूपमा पंडे, माटे किरिया छे ते पुष्ट भविकजनोने आलंबन आधार भूत छे..॥ ६०॥ .. .
चरित नणी बहु लोकमांजी, जरतादिकना जेह।... लोपें शुभ व्यवहार जी, बोधि हणे निजं तेह ॥सोला।।
वच सुरेंअश्वामीकर तस्यच तथास