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होय ते मध्यम कहिये तथा अर्द्धगुणे हीन होय ते जघन्य कहियें अपर के० ए अर्द्ध थकी हीनगुणी होय ने दरिद्री दीन जाणत्रा केमके दरिद्री होय ते पोताना उदर भरवानी चिंतायें व्याकुलपणे करी ग्नना क्रयविक्रयनी चिंता न करी शके तेम हीनगुणो ते धर्मरत्ननो मनोरथ पण न करी शके. यतः - पायद्ध गुणविहिणा, एएस मज्झिमाध्वरा नेया । इत्तो परेण टीणा. पाया मुणेयव्वा ॥१॥ ॥ २१ ॥
अरजे वरजी पापने. ह धर्म सामान्य |
प्रभु तुझ भक्ति जगलहे, तह होए जन मान्य ॥ २२ ॥
अर्थ- जे पापने वर्जिने ए सामान्य धर्म जे श्रावकधर्म तेने अरजे के० उपार्जे ते प्राणी हे प्रभु नागरी भक्ति करीने जगलहे के जग प्रतिष्ठा पाये पडले गवा गुणवंत होय तेतारी भक्ति करें नया ने प्राणी सर्व लोकने मान्य होय ।। २२ ।।
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॥ दाल वारमी ॥
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एकवीस गुणे सहिन होय ते भाववाचकपणुं पामे माने भावभावना गुण वर्णवाने वामी कहे है.
॥ चोपानी देशी ॥
एकवीस गुण जेणे लह्या, जे निज मर्यादामा रह्या । नेह भावावना लहे. तस लक्षण ए तुं प्रभु कहे ॥१॥
अर्थ-ए एकवीस गुणने जे पाम्या होय वली जे पोतानी मर्यादामां रह्या होय आचार: मां होय तेज माणी भाववाचकपणुं पाये गुटले ए भाव जे पूर्व द्रव्यभावक थयीने, उत्तरकाले भावावक थाय ते भावश्रावकना लक्षण ए प्रमाणे हे प्रभु वीतराग परमेश्वरु तसे कां ने प्रमाणे आगल कहिये ये ॥ १ ॥
कृत व्रत कर्मा शोलाधार, गुणवंतो ने ऋजु व्यवहार | गुरु सेवीने प्रवचन दक्ष, श्रावक भावें ए प्रत्यक्ष ॥ २ ॥
अर्थ- हां मार्गानुसारीना पांत्रीस गुण ज्ञानविमलमुरीयें लख्या छे पण विशेष शादिकमां प्रयोजन नथी तथा एतुं मूल धर्मरत्नमकरणमां कहां छे तेमां पण नथी कथा माटे, अमे लख्या नथी १ कर्यु ले व्रतरूप कार्य जेणे तं कृतव्रतकर्मा कहियें २ शीलवंत होय ३ विवक्षित गुणवंत होय ४ ऋजु व्यवहार एटले सरल मन होय ५ गुरुनी शुश्रूषा एटले सेवा करे ६ प्रवचन के० आगममां कुशल होय डाद्यो होय ए छ लक्षण जेमां होय तेः