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________________ महामहोपाध्याय श्री यशोविजयजी कृत. व्याख्या जेम ते स्फटिक रन, रातुं फूल पासे छे तेथी रातुं देखाय छे. श्याम फूल पार्थवी थकी श्याम देखाय, म जगतना जीवने पाप पुण्य रूप द्रव्य कर्म उपाधिए राग द्वेष परिणाम थाय छे. रागे रातां फूल अने देषे श्याम फूल थाय एम समजवु. अने सहज तो ते शुद्ध स्वभाव छे ॥१८॥ धर्म न कहिएरे निश्चे तेहने, जेह विभाव वड व्याधि । पहेले अंगेरे एणीपेरे नाषियु, करमे होए उपाधि ॥ श्री० ॥१९॥ व्याख्या ते राग द्वेष प्रशस्त परिणाम रूप होय तो कारणे कार्योपचारथी व्यवहारे धर्म कहिए, पण निश्चय नये धर्म न कहिए. जे राग द्वेष विभाव छे, ते महोटी न्याषिरूप के. ए प्रमाणे पहेले अंगे एटले श्री आचारांगे भाष्यु छे के, उपाधि सर्व कर्मे होय तो उपाधिने खभाव केम कहिए ? " अकमस्स ववहारो ण विजइ कमुणा ज्वाही जायई" इति सूत्र ।। अध्ययन बीजे. अकम्म के० ज्यां कर्म जनित विकार नथी त्या व्यवहार नथी. उपाधि ते कर्मे करी होय छे. ॥ १९ जे जे अंशेरे निरुपाधिकपणुं, ते ते जाणारे धर्म। सम्यकदृष्टिरे गुणठाणायकी, जाव लहे शिवशर्म ॥ श्री० ॥२०॥ व्याख्या-जेटले अंशे निरुपाधिकपणुं के० उपाधि रहितपणु ते ते अंशे धर्म जाणो. जेम सम्यक् दृष्टिने मिथ्यात्व उपाधि टली तेटलोज धर्म. विरतिने अविरति टले तेहण धर्म. अपायीने कषाय टल्यो ते धर्म. अयोगीने योग उल्यो वे धर्म. एम सम्यक् धर्म जाणो. जेम सम्यक्दृष्टि गुणठाणाथी मांडी ज्यां मधी शिवशर्म के० मोक्ष मुख पामीए, त्यां सुधी अंशे धर्मसद्धि पामता पूर्ण धर्म ते चौदमा गुणठाणाने छेल्ले समये होय. ॥ २० ॥ एम जाणीनेरे ज्ञान दशा भजी, रहीए आप स्वरूप । पर परिणतिथीरे धर्म न छाडिए, नवि पडिए भव कूप । श्री० ॥२१॥ व्याख्या-एम जाणीने मिथ्यात्व, अविरवि, प्रमाद, कषाय अने योग-ए पांच आअब, तेमनी निवृत्ति ते पांच संवर, एम अंतरंग ज्ञान दशा मनोने आप खरूपे रहीए अने शुद्ध परिणामे वीए. पर परिणतिथी पुद्गल परिणामथी कुग्रहे मिथ्यात्वादिक आदरी धर्म न छांडीए. भव कूप के० संसाररूपी पे न पडीए. ज्ञान दशा विना वाह्य क्रियाए जमालि प्रमुखने अर्थ न सरयो. ॥२१॥
SR No.010663
Book Title125 150 350 Gathaona Stavano
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDanvijay
PublisherKhambat Amarchand Premchand Jainshala
Publication Year
Total Pages295
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, & Religion
File Size14 MB
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