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________________ अर्थ-जेम अंघ लोचनहीन अने पंगु के चरणहीन ए वे मलीने चाले इच्छित ठाण के. वांच्छित स्थानकने विषे चाले तेम सूत्र तथा अर्थ जे टीका प्रमुख मलीने यथार्थ स्थानके अर्थ जोडी शकीय एम कल्पभाष्यनी वाणी छे ॥१०॥ . विधि उद्यम भय वर्णना, उत्सर्गह अपवाद; जि०। तदुभय अर्थे जाणीयें, सूत्र भेद अविवाद ॥ जि० तुझ० ११ ॥ अर्थ-वली १ विधिसूत्र २ उग्रममत्र ३ भयसूत्र ४ वर्णवस्त्र ५ उत्सर्गसूत्र ६ अपवादमूत्र ७ तदुभयमत्र ए सर्व मूत्रना भेदनी खवर अर्थथी जणाय नहीं तो शी खवर पडे जे आ सूत्र ते शी अपेक्षानुं छे. यथा-"संपत्ते भिक्खु कालंमि, असंभतो अमुच्छिओ। इम्मेण कम्मजोगेणं, भत्तं पाणं गवेसए ॥१॥" ए दशवैकालिकना पांचमा अध्ययने कई इत्यादिक विधिमत्र कहीयें तथा "दुमपचए पंडयए, जहा निवडइरागणाणअचए । एवं मणुाण जीवियं, समय गोयम ! मा पमायए॥१॥"इत्युत्तराध्ययनना दशमाध्ययने का इत्यादिक उद्यम सूत्र कहीयें अने नरकने विपे मांस रुधिरादिक वर्णवी कहेवा. यथा-"उत्तराध्ययनना मृगापुत्र अध्ययनमा तथा सुयगडांगना नरक विभत्ति अध्ययनमा ते परमार्थे मांसादिक नथी पण भयमूत्र छे. यतः-"नरएस मंसरुहिराइ,वज पसिद्धिमित्तेण । भयहेउं इहरा तेसि,विउवियभावओन तयं ॥११॥" इत्यादिक भयसूत्रवर्णवसूत्र यथा' ऋथिमिय समिद्धा' इत्यादिक उववाइ जाताधर्म प्रमुखने विपे पायें सूत्र छे ते वर्णव सूत्र छे. बली "इच्चेसि छन्हें जीवनिकायाणं नेव सयं दंड समारंभेजा' इत्यादिक छ जीव निकायना रक्षक प्रमुख आचारांगादिक सूत्रने विषे ते उत्सर्गसूत्र जाणवू तथा छेद ग्रंथ ते पायें अपवाद सूत्र छे अथवा "न वा लभिजा निवणं सहाय,गुणाहियं वा गुणओ समं वा । इक्कोवि पावाइं विवज्जयंतो,विहरेज काम्मेसु असज्ज माणो ॥१॥" इत्यादिक अपवादसूत्रो जाणवां तथा जेमा उत्सर्ग अने अपवाद साथे कहेवाय ते तदुभय सूत्र कहीयें जेम “अट्टज्माणाभावे, सम्म अहिआसियचओ वाहि । तब्भावमि अ विहिणा, पडियारपवत्तणं नेय॥१॥"इत्यादिक अनेक प्रकारनाखसमय परसमय निश्चय व्यवहार ज्ञान क्रियादिक नानामकारें नय मतना प्रकाशक सूत्रना जे भेद ते अविवादपणे के जेमा झगडो न उठे ए रीते स्वस्थानकें अर्थथी जोडाय ॥ ११ ॥ एह भेद जाण्या विना, कंखा मोह लहंत; जि०। भंगंतर प्रमुखे करी, भाष्यु भगवई तंत ॥ जि. तुझ० १२ ॥ अर्थ-तो ए पूर्वोक्त मेद जाण्या विना भगतर प्रमुखे करीने कंखामोह के० मिथ्यात्व मोहनीने लहंत के. वेदे एम भगवतीसूत्रमा तत के निचे भाप्यु छे एटले ए भाव जे सूत्र तो विविध आश्यना होय ते आशयनी जेवारें मालम पडे तेवारें मनमा शंका उपजे के आ खरु के आ खलं एवी शंका थाय अने जे शंका ते मिथ्याखमोहनी याय तथा चोक्तं भगवत्यगे प्रथम शतके तृतीय उद्देशके "अत्थिणं भंते ! समणा निग्गंथा कखामोहनीज कम्म
SR No.010663
Book Title125 150 350 Gathaona Stavano
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDanvijay
PublisherKhambat Amarchand Premchand Jainshala
Publication Year
Total Pages295
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, & Religion
File Size14 MB
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