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________________ - ॥ श्री पंचपरमेष्ठिभ्यो नमः ।। || श्रीमद्विजयानन्द सूरीश्वर पादपोभ्यो नमः ॥ ॥अथ ॥ श्रीमद्यशोविजयजी उपाध्यायकृत साडात्रणसोगाथार्नु स्तवन अर्थसहित प्रारंन. ॥ प्रथम अर्थकानुं मंगलाचरण ॥ पार्श्वनाथपदद्वंद्र, नत्वा सीमंधरप्रभुम् ॥ स्तवस्य वात्तिकं कुर्वे, स्वपरानुग्रहाय वै ॥१॥ ॥ हवे अर्थकांनी सूचना । आ स्तवन मांडेली गाथाओना अर्थ अन्वये करी कहीशुं पण पाघरो नहीं कहेवाय माटे पद आगल पाछल जोडीने पोतानी घुद्धिए विचारी जोशो तो खरो अर्थ बेसशे. ॥ढाल पहेली ॥ ॥ ए डिकिहांराखी ॥ए देशी॥ श्रीसीमंधर साहिव आगें। वीनतडी एक कीजें ॥ मारग शुद्ध मयाकरी मुझने। मोहन मूरति दीजेरे ॥ जिनजी, वीनतडी अवधारो॥ ए आंकणी॥१॥ अर्थ-श्री के० चोत्रीश अतिशय अने आठ मातिहार्यादिक वाद्यलक्ष्मी तथा केवल ज्ञानादिक अभ्यंतरलक्ष्मी तेणेकरी युक्त एहवा सीमंधर नामे साहिव ते आगल एकज शुद्ध मार्ग ओलखवारूप अद्वितीय वीनति करीये ते माहरा ऊपरं मया के० कृपा करीने शुद्ध मार्ग जेरबत्रयरूप मोक्षमार्ग अथवा अनेक दर्शनी वितत्थसंवादी तथा विपरीत भाषण करनारा स्वदर्शनीने साचा मानवा ते अशुद्धमार्ग कहीये ते सर्व उवेखीने स्याद्वादशैलीयें जैनमार्ग ओलखवो ते शुद्ध मार्ग कही ते शुद्ध मार्ग सेवी अनेक भव्यजीव स्वसंपदा भोगी थया एहवो शुद्ध मार्ग ते हे मोहनमूरति के. वल्लभमूरति ! मुझने दीजे के० मुझने यो आपो ए वीनती करीये छै माटे हे रागद्वेपना जीतणहार जिनजी! ते अमारी बीनती अवधारो के० केवलज्ञाने करी जाणो ॥१॥ चाले सूत्र विरुद्धाचारें । भाषे सूत्र विरुद्ध ॥ एक कहें अमे ... मारग राखू । ते केम मानूं शुद्धरे ॥ जिन० वी० २॥
SR No.010663
Book Title125 150 350 Gathaona Stavano
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDanvijay
PublisherKhambat Amarchand Premchand Jainshala
Publication Year
Total Pages295
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, & Religion
File Size14 MB
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