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दोदसी' गाथा स्तवनः ते जिनमतिमाने, उमओपरिकं के० बेहु पासे, पत्तेयं पत्तेयं के प्रत्येके प्रत्येके एटले एकेकी जिनमतिमाने, चामरपारपडिमाओ के० चामरनी धरनारी घे वे प्रतिमा छे. ताओ णं के० ते चामरधार प्रतिमाओ केवी छे ! ते कहे छे. नाणामणिकणग के० नाना प्रकारना मणि तथा सुवर्ण-तेणे करी विमल के० निर्मल, महरिह के० महर्य, तवणिज्जुञ्जल के. तपाच्या सुवर्णमय उज्वल अत्यंत देदीप्यमान, विचित्त के० विचित्र प्रकारना, दंडाओ के. चामरना दंड छे. चिल्लियाओ के० देदीप्यमान, शंख प्रसिद्ध छे. कुंद के० मचकुंदनु फुल, दगरय के० पाणीना कण, अमयफेणपुंज के० अमृतशब्दे क्षीरसमुद्र तेहतुं फेण तेहनो पुंज फे० समूह, सनिगासाओ के.. ते सरखा उज्वल मुहुम के० सूक्ष्म, रयय के० रूपानादीहवालाओ के. दीर्घ लंबायमान वाल छे एडवा धवल वामर छे. ते सलील ओहारेमाजीओओहारे माणीओचिति के० लीलाए जिनने ओवारती थकी एटले वीझती थकी रहे. तासिणं इत्यादि. वली ते जिनमतिमानी आगल दो दो नागपडिमाओ के० चे चे नागदेवतानी मतिमा छे. बली दो दो जखपडिमाओ के० थे वे यक्षदेवनी प्रतिमाओ छ, वली दो दो भूयपडिमाओ के० वे वे भूतनी प्रतिमाओ छ वली दोदो कुंडधारपडिमाओ के. घे वे आज्ञाधार देवनी प्रतिमाओ छे. ते सर्व प्रतिमाओ केहेवी छे? विणोवणयाओ के० विनये करी उपनत के० नमोओ छे. पायवडियाओ के पगे लागती छे पंजलिउडाओ के० प्रांजलिपुट करयोछएटले हाथ जोडग्या छ एवी सनिरिकत्ताओ चिट्ठत्ति के० रूही रीते रही छे. सन्चरयणामईओ के० सर्व रस्नमयी. अच्छाओ इत्यादिक वर्णववी. यावत् प्रतिरूप छे. सूत्रम्-"तासिणं जिणपडिमाणं पुरओ अट्ठसयं घंटाणं अठसय चंदणकलसाणं अट्ठसयं भिगाराणं एवं आयंसगाणं थालाणं पातीणं सुपइट्ठगाणं मणगुलियाणं वातकरगांणं चित्ताणं रयणकरंडाणं हयगाणं जावउसमकंठगाणं पुष्फचंगेरीणं जावलोमहत्यचंगेरीणं पुप्फडलगाणं अठ्ठसयं तेलसमुग्गाणं जावधूवकडुच्छगाण सनिरिकताण चिति" अर्थ-तासिणं इत्यादि ते जिनपतिमाने आगल, असयं घंटाणं के. एफसो आठ घंटा छे अछसय चंदणकलसाणं के० एकसो आठ चंदनना कलश छे अट्ठसंयं भिंगाराणं के० एकसो आठ भिंगार-ते पण कलर्श विशेष छे. एवं के. एरीते जे आगल कहीए. तेपण एकसो आठ आठ कहेवा. आयसगाणं के. आरिसा छे, पात्रीओ छे, थाल छे, मुमतिष्टक के० भाजन विशेष छे. ए शब्दना अर्थ ढालना टवामां लख्या छे तेहथी जाणवा. मनोराप्तिका वावकरक चित्ररत्नना करंडिया छे, हयकंठ प्रमुख कंठ कहेवा, फूलममुख चंगेरी कहेवी. एम पुष्प प्रमुखना पडल कहेवा. अटठसय तेलसमुग्गाणं के० एकसो आठ, तेलना डावडा छे. यावत् छेडे एकसो आठ, धूपना कडछा कहेवा. सणिरिकत्ताण चिट्ठति के० रूढीरीते रह्या छे. वली भागल नंदीश्वर दीपना अधिकार मध्ये सिद्धायतननो अधिकार कहीने ए पाठ लख्यो छे.
"तत्यणं वहवें भवणवइवाणमंतरजोइसवेमाणियादेवा चाउम्मासियपाडिवएस संवच्छ
, तस्यच , ::