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________________ (७६) महामहोपाध्याय श्री यशोविजयणी त. जोडीए. सरिषा के सरखा-ए सर्व एकसो आठ कहेवा. रवना पुंज एकसों माठ, वली फूलनी पंगेरी के० छाबडी, माल्य के० फूलमालानी चंगेरी. तेमज चूर्ण के सुगंधी चूर्णनी, अनेरी के० वीजी छावडी. ए पण एकसो आठ कहेवी. गंध वस्त्र आन्नरण चंगेरी ॥ सरसव पुंजणी केरीरे ॥१०॥ एम पुष्पादिक पडल वखाण्यां ॥ आगे सिंहासन जाण्याधि०॥१२॥ अर्थ-वली गंधनी एंगेरी. वखनी चंगेरी, आभरणनी चंगेरी अने सरसवनी चंगेरी, वली पुजणी केरी के० जणीनी चंगेरी. ए सर्व एकसो आठ जाणवां. एम पुष्पादिक के० फूल मास्ना, पडल के वख, वखाप्यां के जीवाभिगम प्रमुखने विषे वखाण्यां छे. वली आगल सिंहासन जाण्यां छे, सिद्धांव वचने करीने. ॥१२॥ छत्र ने चामर आगे समुग्गा ॥ तैल कुष्टभूत जुग्गारे ।। १०॥ भरिया पत्र चोयग सुविलासे ॥ तगर एला शुचि वासेरे॥०॥ १३.! अर्थ-छत्र एकसो आठ, चामर एकसो आठ. वली आगल समुग्गा के० डावडा. तैलभृत वे० सुगंधी तेलना भर्या, कुष्ट के० सुगंध वस्तुना भा. जुग्गा के० योग्य. ए सर्व एकसो आठ आठ जाणवा. वली डावडा पत्रे करी मर्या के. चोगय के० सुगंध द्रव्ये भर्या छे. मुविलासवंत छे. तगरे करी भरचा छे. एला के० एलचीए भरथा छे. शुचिवास के पवित्रवासे छे. इति त्रयोदश गाथार्थे ॥ १३ ॥ वलि हरताल ने मनसिल अंजन ॥ सवि सुगंध मनरंजनरे । ध०॥ ध्वजा एक शत आठ ए पूरां ।। साधन सर्व सनूरारे ॥१०॥१४॥ अर्थ-वली हरतालना डावडा छे, मनसिलना डावन छे-अने अंजनना डावा . सवि सुगंध के० सर्व मुगधिवंत हे. मनरंजन के० मनने रीझ उपजावे एवा डावा छे. ध्वजा के० नाहानी ध्वनाओ छे, ए सर्व एकसो आठ पूरां के ए-सर्व साधन-छे. सनरी के० नूरसहित छे. ॥ इचि चौदमी गाथार्य ॥ १४ ॥ सुर ए पूजा साधन साथे ॥ जिनपूजे निज हाथेरे ॥१०॥ सिद्धायतने आप विमाने । थूभादिक बहु मानेरे ॥ध॥१५॥ अर्थ-मुर जे देवता-ते ए पूजानां साधन सहित, जिनेश्वरनी पूंना पोताने हाये करे ३. आप विमाने के० पोताना विमानने विषे, सियतने के सिद्धन घर-तेहने विषे पूजा करे है. वली धूमादिकने विर्षे वहु मान करे. इति गाथार्य ।।.१५ ॥ त्यां देवता भावना भावे, ते शीरीते भावे ! ते कहे के,
SR No.010663
Book Title125 150 350 Gathaona Stavano
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDanvijay
PublisherKhambat Amarchand Premchand Jainshala
Publication Year
Total Pages295
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, & Religion
File Size14 MB
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