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________________ दोडसो गाथा स्वन. ( ६७ ) अर्थ- सदारंथमां गुण जाणीजे के० असदारममां बेठो होय तेने सदारंभमां गुण जाणीए. शो गुण जाणीए ? ते कहे छे. असदारंभनिवृत्ति के० 'असदारंभनो त्याग था. एटले ज्यांलगी सदारंभमां प्रवृत्ते त्यांलगी असदारंभ न करेज, बली सदारंभमां द्रव्यमूर्छा उतारे, ते द्रव्ये असदारंभ न सेवे. इति भाव. ते उपर सूत्र साख देखाडे के अरमणिकता त्यागे के० अरमणिक न थाजे. ए प्रकारे, भाषी के० कही. प्रदेशी एमज प्रवृत्ति कें देशी राजानी वृत्ति बतावी. एटले ए भाव के, केशीस्वामिए मदेशी राजा धर्म पाम्या तेवारे कछु के हे राजन् रमणिक थहने अरमणिक म थाजे. तेवारे रमणिक थाजे एम कलेज. इति गाथार्थ ॥ १५ ॥ हवे सूत्रपाठ लखीए छैए. " मा णं तुमं पएसी पुब्बि रमणिज्जे भवित्ता पच्छा अरमणिधे भविज्जासि ||" इत्यादि. अस्यार्थ - माणं तुमं के० मत थाजे तुं. पुव्विं रमणिज्जे भवित्ता के० पूर्वे अन्यने दान देनारो थइने पछी, अरमणिज्जे भविजांसि के हवे धर्म पाया पछी अदाता थइश मां. अन्यथा अमने अंतराय बंधाय. वली जिनधर्मनी अपभ्राजना थाय. इति. वली आगळे आलावे प्रदेशीए कहुं छे के, हुं पूर्वे रमणिक थइने अरमणिक नहीं थाउं. हुं सात हजार गामना चार भाग करीश. एक भाग हाथी घोडा प्रमुख वाहनमां, देश, एक भाग कोठारमां नाखीश, एक भाग अंतःपुरने दइंश, अने एक भाग दानशालाए विपुल चार प्रकारना अशनादिकं रंघाषीने घणा श्रमण, माहण, भिक्षु, पंथी प्रमुखने आपीश. इत्यादि पाठ तो छे. जो सदारंभमां गुण छे तो, इति ॥ वली सूत्रसाखे बीजुं दृष्टांत देखाडे छे. लिखन शिल्पशत गणितं प्रकाश्यां ॥ त्रण प्रजा हित हेत ॥ प्रथम राय श्री ऋषभजिणंदे || तिहां पण ए संकेत ॥ सु० ॥ १६ ॥ अर्थ-लिखन के० अढार लिपि गणित पद अहींयां जोडीए. एटले गणित ते एक, दर्श, शतं सहस्रं इत्यादिक, शिल्पशत के० सो शिल्प, ए प्रकाश्यां के० कां. त्रण के० ए लिखनादिक जाणत्रां. उपलक्षणथी बहोतेर पुरुषकला १, चोसठ खीनी कला २, अने सो शिल्पकला ३, प्रजाहित हेत के० प्रजाना हितने कारणे, प्रथम राय के प्रथम राजा श्री ऋषभजिनेश्वरे खांडयां हिांपण ए संकेत के० त्यां श्री ऋषभदेवने पण एज संकेत छे. एटले ऋषभदेवजीने पण उन्मार्ग तजीने मार्गे लोक प्रवृत्ते एवोज संकेत के. अन्यथा ऋषभदेवजी त्रण ज्ञानना धणी एम वतावेज केम ? इति भाव. ते सूत्रपाठ कहे - “लेहाइयाओ गणियप्पहाणाओ सउणरुयपज्जवसाणाओ बावतारं कलाओ चउसट्ट्ठिमहिलागुणे सिप्पस च कम्माणं तिन्निवि पयाहियाए उवदिसह उवदिसइता ||" इति व्याख्यालेहाइयाओ के० लिखन आदेदेइ, गणियप्पहाणाओ के गणित के प्रधान जेहमां. सउणरुयपज्जवसाणाओ के० शकुनरुत छेहेडे छे जेने, वावचरिं कलाओ के० एवी बहोतेर कला १, चउसठिमहिलागुणे के० चोसठ स्त्रीना गुण २, सिप्पसयं च कम्माणं के० कर्म जे कृषि वाणिज्यादिकं. तेहमां सो शिल्प ३, तिनिवि के० एत्रणे, पयाहियाए के० प्रजाना हितने तस्यच तथास
SR No.010663
Book Title125 150 350 Gathaona Stavano
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDanvijay
PublisherKhambat Amarchand Premchand Jainshala
Publication Year
Total Pages295
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, & Religion
File Size14 MB
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