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दोसो गाथानुं स्तवन.
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मानशे के० सघलो संभव नहि माने, वींटाशे तेह आठे के० ते आठे कर्मे बीटाशे, एटले घणी संसार रझलशे ॥ २२ ॥ तथा वली एहज संभव देखाढे छे.
पंडिकमणादिक क्रम नहीं || पाठे सप्तम अंगेरे ॥ पढम अतु ओगथी प्रकरणे ॥ सर्व कह्यो विधि रंगेरे || शा० ॥ २३ ॥
अर्थ - पडिकमणादिक क्रम के० पडिकमणादिकनो अनुक्रम, नहीं पाठे सप्तम अंगे के उपासक दशांगमां पाठ नथी. एटले ए भाव जे साधुने पडिकमणानो अनुक्रम तो थोडोएक श्री उत्तराध्ययने सामाचारी अध्ययनमां कह्यो छे, पण श्रावकने तो सातमा अंगमां आणंदादिकने कांइए बताव्यो नहीं; तेबारे श्रावक पडिकमणादिक कोण सूत्र उपर करे ? तेमाटे ए नगुरांने उत्तर देवानुं ठेकाणुं नयी. इहां शिष्ये पूछ के हे स्वामिन्, तेवारे श्रावक क्यांथी करे छे ? तेहने करुणाए पाछो जवाब कहे छे. पदम अणुओगथी के० प्रथमानुयोग जे दृष्टिवादना चोथा भेदनो प्रथम भेद, तेहमां थकी प्रकरणमां पूर्वाचार्ये सर्व विधि को छे. रंग के० पर उपकारने रंगे को छे. यतः श्रीसमवायांगसूत्रे - " से कि ते अणुओगो अणुओगे दुबिहे पश्नते तं जहा, मूलपढमाणुओगे य गंडियाओगे || ' इत्यादि. अर्थ - वारमा दृष्टिवादना भेद पांच छे. एक परिकर्म, बीजो सूत्र, त्राजो पूर्वानुगत, चाथा अनुयोग, अने पांचमो चूलिका - तेयां चोथो अनुयोग ते, दुविहे पनते के० ते वे प्रकारे छे. तेमां मूल प्रथमानुयोगमा घणी वातो सूत्रकारे लखी छे, पण ते कहेतां ग्रंथ वधेछे माटे नथी कहेता . इति गाथार्थ ॥ २३ ॥
हवे कोइक कहेशे जे प्रदेशी प्रमुखना अधिकारमां विशेषे बात कां न कही ? ने उत्तर कछे जे ए सिद्धांतनी शैलीजछे; ते उपर गाथा कंछे. किहांएक एक देशज ग्रहे ॥ किहांएक ग्रहे ते अशेषोरे ॥ कि एक क्रम उतक्रम ग्रहे ॥ ए श्रुतशैली विशेषोरे ॥ शा० ॥ २४ ॥
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अर्थ - किहांएक एक देशज ग्रहे के० कोहक स्थानके तो वस्तुनो देशज एक ग्रह. प्रेम श्री भगवती सूत्रमध्ये रथ मुसल संग्राम तथा महा शिलाकंटक संग्राम कहो, तेम, किहांएक ग्रहे ते अशेषो के० कोइक स्थानके समस्त ग्रहे, जेम निरयावलीमध्ये एहज संग्राम विस्तारे का छे. किहांएक क्रम के० कोइक स्थानकनेविषे अनुक्रमे कहे. जेम पनवणा प्रमुख विषे धर्मास्तिकायादिक अनुक्रमे कथा छे. उपक्रम ग्रहे के० कोइक स्थानके पश्चातु पूर्वी ग्रहे. जेम कल्पसूत्रनेविषे वीरस्यामिथकी रुपभदेवजी लगे अधिकार कह्यो. ए श्रुतशैली विशेष के० ए सिद्धांतनी शैली विशेषछे. यतः - "कत्थइ देसग्गहणं, कत्थई विप्पति निरवसेसाई | महकमाई, सहाववसओ निरुत्ताई ||१||" इति कल्पभाष्ये सुगमा ॥ ए घातो नजरमा राखे तो सुत्रनो खरो अर्थ थाय. ते देश प्रमुख सूत्रे ग्रह्मा होय ते संपूर्ण तो निर्युक्ति टीका प्रमुखमा पामीए. इति गाथार्थ. ॥ २४ ॥ इवे उपसंहार करेछे.
वच सुरेंद्रश्चामीक
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