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________________ क्षपणासार गाथा ७६ ५] 'गणणादेयपदेसगगुणहारिणटाणफयाणं तु। होदि असंखेजदिमं अवेरादु वरं अांतगुण ।।७६॥४६७।। । अर्थः-गणनाकी अपेक्षा अपूर्वस्पर्धक प्रदेशगुणहानि स्थानान्तरके स्पर्धकोके असख्यातवेभागप्रमाण हैं । जघन्यअपूर्वस्पर्धकके अविभागप्रतिच्छेदोसे उत्कृष्ट अपूर्वस्पर्धक मे अनुभागसम्बन्धी अविभागप्रतिच्छेद अनन्तगुणे हैं ।।। विशेषार्थः- पूर्वस्पर्द्ध कोकी आदिवर्गणा एक-एकवर्गणा विशेषसे घटते-घटते आधी हो जाती है उतने आयामका नाम, एकगुणहानिस्थानान्तर है। इसमे अभव्योसे अनन्त गुणे और सिद्धोके अनन्तवेंभाग स्पर्धक होते हैं उनको उत्कर्षण-अपकर्षणभागहारसे असंख्यात गुणे भागहारके द्वारा भाग देनेपर, जो प्रमाण आवे उतने अपूर्वस्पर्धक होते हैं अर्थात् एकप्रदेशगुणहानिस्थानान्तरके स्पर्धकोके असख्यातवेंभागप्रमाण अपूर्वस्पर्धकोकी संख्या (गणना) होती है, वह सख्या अभव्योसे अनन्तगुणी और सिद्धोके अनन्तवेभागप्रमाण अनन्त है। प्रथमसमयमे रचे गए अपूर्वस्पर्धकोमें से प्रथम अर्यात् जघन्यस्पर्धककी आदिवर्गणाके अविभागप्रतिच्छेदसमूह सर्वजीवोसे अनन्तगुणा होते हुए भी उपरिम पदोकी अपेक्षा स्तोक है । द्वितीयस्पर्धककी आदिवर्गणामें अविभागप्रतिच्छेदसमूह अनन्तवहुभाग अधिक है । प्रथमस्पर्धकको आदिवर्गणाके सदृश अविभागप्रतिच्छेदवाले परमाणुओंकी संख्यासे अविभागप्रतिच्छेदोको गुणा करनेपर अविभागप्रतिच्छेदसमूहरूप एकपुज होता है, उससे दूसरेस्पर्धककी आदिवर्गणाके सदृश अविभागप्रतिच्छेदवाले परमाणुओमे सर्व अविभागप्रतिच्छेदसमूह कुछकम दुगुना होता हुआ अनन्त बहुभाग अधिक है। प्रथमस्पर्धककी आदिवर्गणाआयामसे (आदिवर्गणा प्रदेशजसे) दूसरेस्पर्धककी आदिवर्गणाप्रायाम विशेषहीन है । एकस्पर्धक शलाकाप्रमाण वर्गणाविशेषके बराबर विशेषहीनका प्रमाण है । प्रथमस्पर्धककी आदिवर्गणाके एक परमाणुके अविभागप्रतिच्छेदसे द्वितीयस्पर्धककी आदिवर्गणाके एकपरमाणुमें अविभागप्रतिच्छेद दुगुणे होते हैं। प्रथमस्पर्धककी आदिवर्गणाके अविभागप्रतिच्छेद प्रतिस्पर्धककी आदिवर्गणामें दुगुणे-तिगुणे१. क. पा० सुत्त पृष्ठ ७८६ सूत्र ४६७ । धवल पु० ६ १० ३६६ । २ क. पा. सुत्त पृष्ठ ७६१ सूत्र ५०१-२। घ० पु०६ पृ० ३६७ । ३ ज० ध० मूल पृ० २०२७ । ४. "मणता भागा अणतभागा, अणतभागेहिं उत्तरमणतभागुत्तर ।" (ज० ध० मूल पृष्ठ २०२७)
SR No.010662
Book TitleLabdhisara Kshapanasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mukhtar
PublisherDashampratimadhari Ladmal Jain
Publication Year
Total Pages656
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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