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________________ क्षपणासाय गाथा २६ ] २६ अर्थः-अन्तःकोड़ाकोड़ीसागर स्थितिबन्धसे जबतक पल्यमात्र स्थितिबन्ध होता है तबतक स्थितिबन्धापसरणका प्रमाण पत्यके संख्यातवेंभाग है उसके पश्चात् पल्यके असंख्यातवेंभागरूप स्थितिबन्धपर्यन्त पल्यके संख्यात बहुभागवाले स्थितिबन्धापसरण होते हैं अर्थात् प्रत्येक स्थितिबन्धापसरणमें स्थितिबन्ध पल्यका संख्यातबहुभाग घटता हुआ होता है। दूरापकृष्टिसे लेकर जबतक संख्यातहजारवर्षप्रमाण स्थितिबन्ध होता है वहां प्रत्येक स्थितिबन्धापसरण द्वारा पल्यका असंख्यातबहुभाग घटता स्थितिबन्ध होता है। एवं पल्लं जादा वीलीया तीसीया य मोहो य । पल्लासंखं च कर्म बंधेण य वीसियतियानो ॥२६॥४२०॥ अर्थः-इसप्रकार (२० कोड़ाकोड़ीसागरकी स्थितिवाले) बीसीयकर्मोका पल्यमात्र स्थितिबन्ध होनेता वीसीयकर्मोसे डेढगुना तोसीयका और दोगुणा मोहका स्थितिबन्ध है, ऐसा ही क्रम जानना । इसके अनन्तर एक स्थितिबन्धापसरण होनेसे वीसीयकर्मोंका स्थितिबन्ध तो संख्यातगुणाकम होता जाता है । पल्यको संख्यातका भाग देने पर उसमें से बहभाग घटानेसे एकभागमात्र स्थितिबन्ध रहता है तथा अन्य कर्मोंका जबतक पल्यमात्र स्थितिबन्ध नहीं हो जाता उससे पूर्वबन्धसे पल्यका संख्यातवेंभागमात्र विशेषसे हीन स्थितिबन्ध होता है । यहां वीसीयकर्मोंका स्थितिबन्ध स्तोक है उससे ज्ञानावरणादि चार तीसोयोंका स्थितिबन्ध तुल्य होकर संख्यातगुणा है क्योंकि वोसोयकर्मोंका स्थितिबन्ध तो पल्यके संख्यातवेंभाग और तीसीयकर्मोका साधिक पल्यमात्र है एवं तीसीयोंसे मोहनीयकर्मका स्थितिबन्ध विशेष अधिक है इसप्रकार अल्पबहुत्व जानना । इसक्रमसे संख्यातहजार स्थितिबन्ध होनेपर ज्ञानावरणादि तीसीयकर्मोंका पल्यमात्र स्थितिबन्ध हो जाता है । तोसीयकर्मोंके स्थितिबन्धसे तीसराभाग अधिक मोहनीयकर्मका स्थितिबन्ध होता है, क्योकि तीसीयका पल्यमात्र स्थितिबन्ध होता है, तो चालीसीयका कितना स्थितिबन्ध होता है इसप्रकार राशिक करनेपर त्रिभाग अधिक पल्यमात्र मोहनीयकर्मका स्थितिबन्ध प्राप्त होता है। इसके अनन्तर तीसोयकर्मोका एक स्थितिबन्धापसरण द्वारा पूर्व स्थितिबन्धसे पल्यका संख्यताबहुभागमात्र घटता अर्थात् संख्यातगुणा घटता स्थितिबन्ध होता है । यहां नाम व गोत्रका स्थितिबन्ध सबसे स्तोक उससे तीसोयोंका संख्यातगुणा और उससे मोहनीयकर्मका संख्यातगुणा स्थितिबन्ध होता है ।
SR No.010662
Book TitleLabdhisara Kshapanasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mukhtar
PublisherDashampratimadhari Ladmal Jain
Publication Year
Total Pages656
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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