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________________ २] -लवार कालुके चरमसुनुयुतक –—–प्रतिसमय से परिणामस्थान जालना समाप्त हुना सारोको एक-एक समयमे परिणामस्थान अख्यातुलो का समय है । NI [[ ग्राथा अनुयोगद्वार (कि अनुहार समाप्त ि ) मधुतासम्बन्धी प्★ल्पेवहुत्व + । FT) ०४ । द्र --- - - अल्पबहुत्व दोप्रकारका है विशुद्धियोकी तीव्रता र परिणाम की पत्तियो की क्रीता (सरबा) - सम्बन्धी बहसपूर्वक क प्रथमसमयमे परिणामोकी पक्तिका आयामी (संख्या) सबसे स्लाभा हा उससे दूसरे समयमे विशेष अधिक है । प्रथमसमयसम्बन्धी परिणामोके यन्तम् हूर्त के समय प्रमाण खण्ड करनेपर उनमेंसे एकक्डप्रमाण विशेषअधिक प्रमाण हैं । अर्थात प्रथम मयंक परिणामोकों अन्तर्मु इतके समयति, भीग देनपर जो लव्ध प्राप्त हो, उतने (श्रसंख्यात- ( लोक) प्रमाणे विशेषअधिक है ।। इसप्रकार अन्तरो विधाका आश्रय करके अर्थात् निरन्तर विशेषअधिक, क्रमसे अन्तिमसमयके परिणामो प्रतिके प्रायाम(परिम की संख्या) के प्राप्त होनेतक कथन करते हुए ले जाना जाहिए, किन्तु इतनी विशेषता है कि प्रत्येकसमयमे अपूर्व ही परिणामस्थान होते हैं । इसप्रकार पूर्वकरणके अन्तमुं हूर्तकालमे सर्वत्र प्रत्येकसमयमे असख्यात लोक प्रमाण परिरंगांमस्थान होते हैं। दूसरे करणको अपूर्वकरण- सज्ञी देनेका कारण कहते हैं 'जम्हा' उद्देरिमभात्रा' हेट्टिमभावैहिं रात्थि सैरिसन्तं" । लम्हा विदियं करणं अव्त्रकरणं त्ति गिट्टि ५१ ॥ -अर्थ-क्योकि उपरिम समय के परिणाम नीचले समय सम्बन्धी परिणामोके समान नही होते इसलिये इस दूसरे करणको अपूर्वकरण' कहा गया है विशेषार्थ - जितने स्थान ऊपर जाकर विवक्षित समयकें परिणामोकी अनुकृष्टिका विच्छेद होता हैं उसीका नाम निर्वर्गरणाकोडक" है, किन्तु यहाँ अपूर्वकरणके प्रत्येकसमयमे निर्वर्गणाकाङकोको ग्रहण करना चाहिये, क्योंकि विवक्षितसमयक् परिणाम ऊपरके एक भी समयमै सम्भव नही है । प्रत्येकसमयमें अनुकृष्टिके विच्छेद स्क्रूप म्रुचूर्वकरणका लक्षण जानना चाहिए । CETTE CATC ज. १२२५२-५३-५४ । th २. दृश्यताम् घ पु १ पृ १८३ । प्रा. पं स . १ गा. . १८३० - जी. या ३ कालच्छे FIF ज घ. प. पू. १२, १५४ 15 F ܐ ୧ i
SR No.010662
Book TitleLabdhisara Kshapanasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mukhtar
PublisherDashampratimadhari Ladmal Jain
Publication Year
Total Pages656
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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