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________________ लब्धिसार [ गाथा ४६ १०००००००००० १००००००००० 000000 १०००००००० १०००००००० १००००००००० १००००००० प्रथमनिर्वर्गणाकाण्डक १०००००००० १००००००० १०००००० १०००००० समय द्वितीय १००००० समय प्रथम | १०००० समय १००००००० १००००० १०००००० - : उपर्युक्तसदृष्टिमे अध करणकालके ८ समय और एकनिर्वर्गणाकाण्डकके चारसमय, प्रत्येक समयके चारखण्ड, अध प्रवृत्तकरणकालमे दो निर्वर्गणाकाण्डक । चयका (विशेषका) प्रमाण एक शून्यरूपसख्या परिणामोकी संख्याकी द्योतक है । इसी उपर्युक्त कथनकी अकसदृष्टि निम्न प्रकारसे है। प्रथम निर्वर्गणाकाण्डक | द्वितीय निर्वर्गणाकाण्डक | तृतीय निर्वर्गणाकाण्डक | चतुर्य निर्वर्गणाकाण्डक | समय १ | २ | ३ ४ ५ ६ ७८६ | १० | ११ | १२ १३ | १४ | १५ | १६ | | ३| | सर्वधन |१६२ १६६ १७० १७४१७८ | १८२, १८६ १६०/ १६४ १६८ २०२ २०६/२१० २१४ २१८ २२२ इस अकसदृष्टिमे अध प्रवृत्तकरणका १६ समय, एकनिर्वर्गणाकाण्डकमें चारसमय, प्रतिसमय चयका प्रमाण ४, प्रतिखड चयका प्रमाण १ तथा निर्वर्गणाकाडकोकी सख्या ४' । __ अध प्रवृत्तकरण के प्रथमसमयसम्बन्धी प्रथमखडके परिणाम उपरिमसमयसम्बन्धी परिणामोमे से किन्ही भी परिणामोके समान नही होते है। वहीपर द्वितीयखडके परिणाम दूसरे समयके प्रथमखडके परिणामोके समान होते है। इसोप्रकार यहाके अर्थात् प्रथमसमयके तृतीयादि खडोके परिणामोंका भी तृतीयादि समयोक १ पु. ६ पृ २१६ से उक्त सदृष्टि बनाई है ।
SR No.010662
Book TitleLabdhisara Kshapanasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mukhtar
PublisherDashampratimadhari Ladmal Jain
Publication Year
Total Pages656
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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