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________________ पृष्ठ पंक्ति te; २७ १६९ ३ ३ (22 २०० ११ २०० २७ २०१ १० २०१ ११ २०२ २०३ २०३ ६ ७ २०३ १४ २०३ १८ २०६ १३ २०७ ३ २०५ १ २०६ ५ २११ १२ २११ २३-२८ अशुद्ध परमगुत्सम्पदा वीर्यपरिणामो मे होने पर भी अन्तर्मुहूर्त नल्यातवे होता है । कार्मण जाते हैं। मूल असम्भव है क्योकि क्षपरण के उपदेश मे यह लोकव्यापी, पाचवें समय मे सकोच - ( १० ) विहुमारि लोकव्यापी, फिर क्रमश: पाचवें समय ने लोकपूरण क्रिया की संकोचत्रिया उसका सकोच होकर आठवें समय मे आठवें समय मे दण्ड का संकोच हो जाता है । दण्ड हो जाता है । काल मे श्रर व्यतीत कर श्रनख्यात भागरूप परिणामाकर एत्ता ख्यातगुणे क्रम से परिणमन अथवा द्वितीय उपदेशानुसार. *** 2001 994 AT LE द्वितीय समय मे नष्ट होती हैं । शुद्ध परमगुरुसम्प्रदाय वीतराग परिणामों मे होने पर भी आयु के अन्तर्मुहूर्त असंख्यातवें २१४ १४-१५ राशि को जघन्य स्थिति होता है । क्योकि कार्मरण जाते हैं । क्योकि वहा मूल असम्भव है और क्योकि बाद सविसुमरिण तक असंख्यातवें भाग प्रमाण प्रविभागी प्रतिच्छेद अपूर्व स्पर्धको को चरम वर्गणा मे होते हैं । अर्थात् पूर्व स्पर्धको मे से जीव प्रदेशो का अपकर्षण कर उनको पूर्व स्पर्धको की श्रादि वर्गरणा के अविभागी प्रतिच्छेदो के असंख्यातवें भाग रूप परिणमाकर एत्तो प्रतिसमय संख्यातगुणे क्रम से परिणत अथवा प्रथम समय मे स्तोक कृष्टियों का वेदन करता है; क्योकि अघस्तन और उपरिम असंत्यातवें भाग प्रमाण ही कृष्टियां प्रथम समय मे विनाश को प्राप्त होती हुई प्रवानरूप से विवक्षित हैं । दूसरे समय मे असख्यातगुणी कृष्टियों का वेदन करता है । क्योकि प्रथम समय मे विनाश को प्राप्त होने वाली कृष्टियो से दूसरे समय मे, अवस्तन और उपरिम, असंख्यातवें भाग से सम्बन्ध रखने वाली, असल्यातगुणी कृष्टिया विनाश को प्राप्त होती हैं; यह उक्त कथन का तात्पर्य है । स्थितिकाण्डक की जघन्यस्थिति
SR No.010662
Book TitleLabdhisara Kshapanasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mukhtar
PublisherDashampratimadhari Ladmal Jain
Publication Year
Total Pages656
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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