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________________ क्षपणासार गाथा २३६ ] [ १६६ शङ्का-स्वस्थानकेवलीके और क्रियाभिमुखकेवलीके अवस्थित एकस्वरूप परिणाम होते हुए भो गुणश्रेणिनिक्षेप में विसदृशपना किसकारणसे हैं ? समाधान-वीर्यपरिणामों में भेदका अभाव होने पर भी अन्तर्मुहर्त शेष रह जाने की अपेक्षा अन्तरंगपरिणामोंकी विशेषतावाले और क्रियाभेदके साधनमें प्रवर्तनेवालेके प्रतिबन्धका अभाव है' । अर्थात् स्वस्थानके वलीसे आवर्जितकरण केवलोके गुणश्रेणियाम व गुणश्रेणिप्रदेशनिक्षेप समान होना चाहिए- ऐसा कोई नियम नही है । इसप्रकार अन्तर्मुहर्तकालतक आवजितकरणसम्बन्धी व्यापारविशेषका पालनकरके स्थितकेवली अनन्तर समयमें केवलीसमुद्घातको करता हैं । शंका-केवलीसमुदुघात किसे कहते हैं ? ___ समाधान--"उद्गमनमुद्घातः, जीवप्रदेशानां विसर्पणमित्यर्थः। समीचीन उद्घातः समुद्घातः, केवलिनां समुद्घातः केवलीसमुद्रातः"२ उद्गमको उद्घात कहते हैं अर्थात् जीवप्रदेशोंका फैलना उद्घात है, समीचोन उद्घात समुद्घात है। केवलियोंका समुद्घात केवलीसमुद्घात है । अघातियाकर्मोकी स्थितिका समीकरण करने के लिए केवलोजिनके आत्मप्रदेशोंका आगमअविरुद्धसे ऊपर, नीचे व तिर्यकपसे फैलनेको के वलीसमुद्घात कहते हैं। अन्य समस्त समुद्घातोंका निषेध करनेके लिये यहांपर केवली विशेषण दिया गया है, क्योंकि यहां अन्यसमुंघातोंका अधिकार नहीं है । दण्ड, कपाट, प्रतर व लोकपूरणके भेदसे वह केवलीस मुद्घात चारप्रकारका है। उनमें सर्वप्रथम दंडसमुद्घातका स्वरूप कहते हैं, केवलीजिन सर्वप्रथम दंडसमुद्घातको हो करते हैं। शंका--दण्डसमुद्घातका क्या लक्षण है ? समाधान--अन्तर्मुहूर्तप्रमाण आयु शेष रह जानेपर केवलोसमुदुघातको करनेवाले केवलीजिन पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख होकर कायोत्सर्ग या पल्यकासनमें स्थित १. णेदमेत्थासकरिणज्ज, सत्थाणकेवलिणो किरियाहिमुहकेवलिणो च अवट्ठिदेगसरूवपरिणामत्ते सते कुदो एवमेत्थुई से गुणसे ढिणिक्खेवस्स विसरिसभावो जादोत्ति । किं कारण ? वीयरायपरिणामभेदाभावे वि अतोमहत्तसेसाउसवपेक्खाणमतरंगपरिणामविसेसाण किरियाभेदसाहणभावेण पयट्टमारणाण पडिबधाभावादो। (जयधवल मूल पृष्ठ २२७८) २. जयधवल मूल पृष्ठ २२७८ ।
SR No.010662
Book TitleLabdhisara Kshapanasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mukhtar
PublisherDashampratimadhari Ladmal Jain
Publication Year
Total Pages656
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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