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________________ ६०] क्षपणासार [गाया ९६ अनन्तगुणितवृद्धि क्रमसे अवस्थित हो जाते हैं । इसप्रकार लोभसंज्वलनके पूर्वस्पर्धकोंसे मायासज्वलनके पूर्वस्पर्धकोंका अनन्त गुणापना विसवादसे रहित है । शङ्का-लोभसंज्वलनके पूर्वस्पर्धकोंसे अनन्तगुणी वर्गणाओंसे मायास्पर्धक अनन्तगुणे कैसे हो सकते हैं ? समाधान-यह कोई दोष नही, क्योंकि वर्गणाशलाकागुणकारसे स्पर्धकशलाकागुणकार अनन्तगुणा है। संज्वलनलोभके पूर्वस्पर्ध कोंको वर्गणाका प्रमाण प्राप्त करनेके लिए जिस अनन्तरूप संख्यासे गुणा किया जाता है उस अनन्तसंख्यासे अनन्तगुणी वह संख्या है जिससे संज्वलनमायाके पूर्वस्पर्धक प्राप्त करने के लिए लोभसंज्वलन के पूर्वस्पर्धकोको गुणा किया जाता है । संज्वलनमायाके पूर्वस्पर्धकोंसे संज्वलनमायाके पूर्वस्पर्धकसम्बन्धी वर्गणाए अनन्तगुणी हैं उससे मानकषायके पूर्वस्पर्धक अनन्तगुणे और उन्हीकी वर्गणाए उनसे अनन्तगुणी, उससे क्रोधकषायके पूर्वस्पर्धक अनन्तगुणे तथा उससे उन्हीकी वर्गणाएं अनन्तगुणी हैं। रस ठिदिखंडाणेवं संखेजसहस्सगाणि गंतूणं । तत्थ य अपुवफड्डयकरणविही णिट्टिदा होदी॥६६॥४८७॥ अर्थ-इसप्रकार संख्यातहजार अनुभागकाण्डघात व स्थितिकाण्डकघात व्यतीत हो जानेपर वहां अपूर्वस्पर्षककरणकी विधि पूर्ण होती है । विशेषार्थ-हजारों अनुभागकाण्डक हो जानेपर एकस्थितिकाण्डक होता है। संख्यातहजार स्थितिकाण्डक और उनसे हजारोंगुणे अनुभागकाण्डकोंके अन्तर्मुहूर्तकाल के द्वारा प्रतिसमय अपूर्वस्पर्धकोको रचना क्रिया होती है । इसप्रकार अन्तर्मुहूर्त कालतक अश्वकर्णकरण प्रवर्तमान रहता है, क्योकि एक अन्तर्मुहूर्त कालमें ही सख्यातहजारस्थितिकाण्डकों और उनसे हजारोंगुणे अनुभागकाण्डकों के द्वारा अपूर्वस्पर्धकोंको रचना पूर्ण हो जाती है। . - १. जयधवल मूल पृष्ठ २०४२-४३ । २. "एवमंतोमुत्तमस्सकग्णकरण" (क. पा० सुत्त पृ० ७६७ सूत्र ५७८; १० पु० ६ पृष्ठ ३७३) जयधवल मूल पृष्ठ २०४३ ।
SR No.010662
Book TitleLabdhisara Kshapanasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mukhtar
PublisherDashampratimadhari Ladmal Jain
Publication Year
Total Pages656
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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