SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 152
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भूअ - (भूत - कृ ) वि भूत, थयेलुं जयपुर-न- ते नामनुं नगर. भाअ - पुं- भाग. सुरुव-वि-सारा रूपवाळु नेवत्थ - न - नेपथ्य. १४ ) द्वार - पुं-स्त्री. (बहुवचनांत ). किलीव - पुं-क्लीव, नपुंसक. अववाय - पुं- अपवाद, निन्दा. भासण -न-चोलवं. अवहरण - न- चोखं. संकुचिअ- (भूत-कृ) वि-संकोचवा. वग्ग - पुं- समूह. निसिअ - (भूत - क) वि - तीक्ष्ण. निद्दलिअ- (भूत-कृ)वि-तोडी नांखेल दरिअ- (भूत - कृ ) वि-मानी. । केसर - पुं- केसरा. सडा - स्त्री-सटा. आपिंगल - वि - थोडुं पीळं. लेहा - स्त्री - रेखा. पिहुल - वि- पृथुल, पहोकुं. महिलायण - पुं- स्त्री समूह. सुवट्टिअ - (भूत - कृ ) वि-सुवृत्त. कटिअड - पुं-कटितट, कडनो भाग. आवलिभ- (भूत-कृ)वि-वळेलं. सुपइट्रिअ-(भूत-कृ)वि-सुप्रतिष्ठित. संठाण - न-संस्थान, किसोरग - पुं-बच्चु. अहिराम - पुं- सुन्दर. वोहि-न- सम्यक्त्व. पाठ ३२ मो. अलसो होड़ अकले पाणिवहे पंगुलो सया होड़ । परनिन्दासु य बहिरो जं चान्धो परकलत्तेषु ॥ १ ॥ ते कहं न बंदणिज्जा रूवं ठूण परकलत्ताणं ? | धाराहयच्च वसहा वच्चन्ति मही पलोअन्ता ॥ २ ॥ सेअंबरो य आतंत्ररो य बुद्धो अ अहव अन्नो वा । समभावभाविअप्पा लहेइ मुक्खं न संदेहो || ३ || सन्याओ विनईओ कमेण जह सायरम्मि निवडन्ति । तह भगवई अहिंसं सव्वे धम्मा संमिलन्ति ॥ ४ ॥
SR No.010661
Book TitlePrakrit Margopdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1919
Total Pages195
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy