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________________ यतिधर्म देशना विधि : ३४९ तथा-ग्रामैकरात्रादिविहरणमिति ॥९३।। (३६१) मलार्थ-और गाममें एक रात्रि आदि प्रकारसे विहार करे। विवेचन-एक गांव या नगरमें केवल एक रात्रि अथवा तो दो रात्रि या मास तक रहे पर ज्ञातरूपसे कि पडिमाकल्पी साधु भाये हैं वहां एक रात्रि ही रहे। अज्ञात अवस्थामें अधिक रहे । कहा है कि "नाएगरायवासी, एग च दुग च अन्नाए ॥१९॥" --ज्ञात अवस्थामें एक रात्रि रहे, अज्ञातमें एक या दो रात्रि रहे। जिनकल्पी या उसके जैसे यथालन्दकल्पिक और शुद्ध परिहारिक ऐसे निरपेक्ष साधु ज्ञातरूपसे या अज्ञातरूपसे एक मास तक रहे। तथा-नियतकालचारितेति ।।१४।। (३६२) मूलार्थ-और नियतकालमें भिक्षाटन करे ॥९४।। विवेचन-नियत समयमें अर्थात् तीसरे प्रहरमें भिक्षाके लिये नावे । कहा है कि "मिक्खापंथो य तइयाए त्ति"॥ -भिक्षाके लिये तीसरी पोरसी (प्रहर )में जावे । तथा-प्राय ऊर्ध्वस्थानमिति ॥१५॥ (३६३) मृलार्थ-और प्रायः कायोत्सर्ग मुद्रामे रहे ॥१५॥ विवेचन-निरपेक्ष यतिधर्म पालन करते बहुधा कायोत्सर्ग मुद्रामें ही रहे। तथा-देशनायामप्रवन्ध इति ॥९६॥ (३६४) मृलार्थ-और देशना देने में बहुत भाव न रखे ॥१६॥
SR No.010660
Book TitleDharmbindu
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorHirachand Jain
PublisherHindi Jain Sahitya Pracharak Mandal
Publication Year1951
Total Pages505
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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