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________________ गृहस्थ विशेष देशना विधि ः १८७ "न मारयामीति कृतवतस्य, विनव मृत्यु क इहातिचार !! निगद्यते यः कुपितो वघादीन्, करोत्यसोत्यान्नियमानपेक्षः॥१०॥ "मृत्योरभावान्नियमोऽस्ति तस्य, कोपाद् दयाहीनतयातु भन्नः। देशस्य भन्नादनुपालनाच, पूज्या अतीचारमुदाहरन्ति" ॥१०५॥ ___--" में प्राणीको न मारुं" ऐसा व्रत करनेवाले व्यक्तिको मृत्यु बिना अतिचार कहासे होता है ? अर्थात् नहीं। इसका उत्तर यह है कि जो कोप आदिसे वध आदि करता है और नियमकी अपेक्षा नहीं करता वह अतिचार है। __मृत्युके अमावसे उसका नियम रहत है, कोप तथा हृदयहीनताले व्रतमंग होता है या अंतर्वृत्तिसे नियम भंग होता है । अतः देशसे भंग तथा देशसे पालन पूज्य पुरुषोंद्वारा अतिचार कहा गया है । - "ये व्रतसे अधिक है " ऐसा जो कहा व अयुक्त है। विशुद्ध हिंसासे जो विरति है उसमें बंध आदि आ जाते हैं (अर्थात् उनका निषेध है) अत ये बंध आदि अतिचार हैं । बंध आदिके कहनेसे तथा उसके लक्षणसे समान ऐसे मंत्र-तंत्र आदिके प्रयोग भी अति. चार ही गिने जाते हैं। अब मृषावाद विरमण नामक दूसरे व्रतका अतिचार कहते हैमिथ्योपदेशरहस्याभ्याख्यानकूटलेखक्रियान्यासा पहारस्वदारमन्त्रभेदा इति ॥२४॥ (१५७) मूलार्थ-इसके पांच अतिचार ये हैं-१ मिथ्या उपदेश, २ रहस्यकथन, ३ झूठे दस्तावेज या साक्षी, ४ अमानतका
SR No.010660
Book TitleDharmbindu
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorHirachand Jain
PublisherHindi Jain Sahitya Pracharak Mandal
Publication Year1951
Total Pages505
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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